सर्वप्रथम अनंतकोटी ब्र्म्हांडनायक श्री महागणेशजी को शत-शत नमन
श्री गणेशजी का कलयुगी भावी अवतार 'धूम्रकेतु' के नाम से विख्यात होगा । उस समय देश समाज की कैसी परिसतिथी रहेगी ,इसका दिग्दर्शन गणेशपुरण 149 वें अध्याय मे इस प्रकार कहा गया है- कलियुग मे प्रायः सभी आचार भ्रष्ट व मिथ्या भाषी हो जाएंगे । ब्रामहन वेदध्यान व संध्यावंदन आदी कर्म त्याग देंगे । यज्ज्ञादी और दान कंही नही होगा । परदोष दर्शन और परनिंदा व परस्त्री अपमान सभी करने लग जाएंगे । सर्वत्र विश्वासघात होने लगेगा । मेघ समय पर वर्षा नही करेंगे। क्रषक नदियों के तट पर खेती करेंगे । बलवान दुर्बल का धन छीन लेंगे और उनसे बलवान उनकी संपाती का हरण करेंगे । ब्रामहन शूद्र कर्म करने लग जाएंगे । और शूद्र वेद पाठ करने लगेंगे छत्रिय वेश्यों के और वेश्य शूद्रों के कर्म करने लग जाएंगे। ब्रामहन चांडाल का प्रतिग्रह स्वीकार करने लग जाएंगे। प्रायः सभी मूढ़ और दरिद्र होंगे। सर्वत्र हाहाकार मच जाएगा। कलयुगी मनुष्य दूसरे का धन लेकर भी शपथपूर्वक अस्वीकार कर देंगे। सभी लोग परधन की याचना करने वाले होंगे परधन स्वीकार करने मे लज्जा व संकोच का अनुभव नही करेंगे। उत्कोच लेकर मिथ्या साक्छी देने मे लोगों को तनिक भी झिझक व आत्मग्लानि नही होगी । लोग सज्जनों की निंदा और दुष्टों से मैत्री करेंगे। सज्जनों का उत्तछेद व दुर्जनो का उत्कर्ष होगा । ब्रामहन मांसाहारी हो जाएंगे। मनुष्य देवताओं को त्यागकर इंद्रिय सुख मे तल्लीन रहेंगे। वे भूत प्रेत और पिशाच की पूजा करने लगेंगे। नाना प्रकार के वेश बनाकर दंभ पूर्वक उदर पूर्ति का यत्न करेंगे। छत्रिय अपने धर्म का पालन छोडकर भिछाटन करने लग जाएंगे। व्रत नियम आचरण सभी लुप्त हो जाएंगे। संतान वर्ण संकर होगी। घोर कली के उपस्थित होने पर साध्वी स्त्रियाँ अपने व्रत से भ्रष्ट हो जाएंगी। पर धन हरण करने वाली सभी मनुष्य मलेछ्य प्रायः हो जाएंगे। वे कुमार्गगामी होंगे । प्रथवी के उर्वरा शक्ती नष्ट हो जाएगी और वृक्ष रसहीन हो जाएंगे। 5 और 6 वर्ष की कनयाए प्रसव करने लगेंगी। उस समय स्त्री पुरुषों की पूर्णायु 16 वर्ष की होगी। देवता और तीर्थ लुप्त हो जाएंगे। धनार्जन ही प्रधान धर्म होगा। इस प्रकार सर्वत्र अधर्म,अनीति,अत्याचार और दुराचार का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा। ईर्ष्या ,द्वेष और मानसिक ज्वाला से सभी जलते रहेंगे। कली की अत्यंत दारुण दशाका विवेचन संभव नही है । उस समय स्वाहा स्वधा और वषटकार कर्म न होने से देवगन उपवास करने लगेंगे। वे अत्यंत भयभीत होकर देवधिदेव श्री गजाननज़ी की शरण मे जाएंगे। फिर विविध प्रकार से उन सर्वविघ्नविनाशन श्री गजाननजी प्रभु का स्तवन कर उन्हे बारम्बार नमस्कार करेंगे। तब कली के अंत मे सर्वदुखहरण परम प्रभु गजानन धारा धाम पर अवतरित होंगे । उनका शूपकर्ण और धूम्रवर्ण नाम प्रसिद्ध होगा (नास्त्रेडमस के अनुसार वरन या शरण से मिलता जुलता नाम) क्रोध के कारण उन परम तेजस्वी प्रभु के शरीर से ज्वाला निकलती रहेगी । वे नीले अश्व पर आरूढ़ होंगे। उन परम प्रभु के हाथ मे शत्रु संहारक तीक्छ्न्तम खड़ग होगा । वे अपनी इच्छानुसार नाना प्रकार के सैनिक व बहुमूल्य अमोघ शस्त्राष्ट्रों का निर्माण कर लेंगे (स्वचालित रोबोट या उपकरण ) । मलेछ्य(पश्चिमी सभ्यता) या मलेछ्य जीवन व्यतीत करने वाले मनुष्यों का निश्चय ही परम प्रभु धूम्रकेतु संहार कर देंगे। उन धर्म संस्थापक प्रभु के नेत्रो से अग्नि वर्षा होती रहेगी । वे सर्वाधार सर्वात्मा प्रभु धूम्रकेतु उस समय गिरि कन्दराओ व अरण्यों मे छिपके जीवन व्यतीत करने वाले पूर्ण वैदिक व शुद्ध ब्रांहनों को बुलाकर सम्मानित करेंगे। और वे करुणामय,धर्ममूर्ती,शूर्पकर्ण उन सत्पुरुषों को सधर्म व सत्कर्म के पालन के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन प्रदान करेंगे। फिर सबके द्वारा धर्माचरण संपादित होगा और धर्म मय सत्ययुग का शुभारंभ हो जाएगा ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें