ॐ श्री महा गणेशाय नमः
कुलधरा पालीवालों ब्राह्मणो का गांव था और एक दिन अचानक यहां फल-फूल रहे पालीवाल ब्राह्मण अपनी इस सरज़मीं को छोड़कर अन्यत्र चले गये । उसके बाद से कुलधरा पर कोई बस नहीं सका । कोशिशें बहुत हुईं पर नाकाम हो गयीं । कुलधरा के अवशेष आज भी विशेषज्ञों और पुरातत्वविदों के अध्ययन का केंद्र हैं । कई मायनों में पालीवालों ब्राह्मणो ने कुलधरा को वैज्ञानिक आधार पर विकसित किया था ।
कुलधरा जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है ।कहते हैं कि पालीवाल समुदाय के इस इलाक़े में चौरासी गांव थे और यह उनमें से एक था । मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हणों की कुलधार शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था । पालीवाल नाम दरअसल इसलिए पड़ा क्योंकि वो राजस्थान के पाली इलाक़े के रहने वाले थे । पालीवाल ब्राम्हण होते हुए भी बहुत ही उद्यमी समुदाय था । अपनी बुद्धिमत्ता, अपने कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने धरती पर सोना उगाया था । हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तानी सरज़मीं के बीचोंबीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पना की थी । रेगिस्तान में खेती । पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था । जिप्सम की परत वाली ज़मीन को पहचानना और वहां पर बस जाना । पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोगों और आधुनिकता की वजह से उस समय में भी इतनी तरक्की कर पाए थे ।
पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था । और बड़ी शान से जीता था ।
पालीवालों ने सतह पर बहने वाले पानी या ज़मीन पर मौजूद पानी का सहारा नहीं लिया । बल्कि रेत में मौजूद पानी का इस्तेमाल किया । पालीवाल ऐसी जगह पर गांव बसाते थे जहां धरती के भीतर जिप्सम की परत हो । जिप्सम की परत बारिश के पानी को ज़मीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते । और ऐसी वैसी नहीं बल्कि जबर्दस्त फसल पैदा करते । पालीवालों के जल-प्रबंधन की इसी तकनीक ने थार रेगिस्तान को इंसानों और मवेशियों की आबादी या तादाद के हिसाब से दुनिया का सबसे सघन रेगिस्तान बनाया । पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहीं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था ।
कुलधरा में दरवाज़ों पर ताला नहीं लगता था । गांव का मुख्य-द्वार और गांव के घरों के बीच बहुत लंबा फ़ासला था । लेकिन ध्वनि-प्रणाली ऐसी थी कि मुख्य-द्वार से ही क़दमों की आवाज़ गांव तक पहुंच जाती थी ।
गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी । घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं । कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं । कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे ।
ऐसा उन्नत और विकसित गांव एक दिन अचानक खाली कैसे हो गया ?
मिसालें तो बहुत मिलती हैं ,पर कुछ मिसालें याद की जाती हैं । क्योंकि वो अनोखी होती हैं । मिसाल सिर्फ एक शख्स की नही ,एक घर की नही , एक कुनबे की नही , एक गाँव की भी नही यह मिसाल है 84 गांवों के हजारों लोगों की है ।एक तरफ लड़की की इज्ज़त और दूसरी तरफ हज्जारों लोग ।गाँव के हज्जारो ब्राह्मणो के पास समय था तो सिर्फ एक रात का एक रात मे ही उनको यह तय करना था की या अपनी लड़की की इज्जत का सोदा कर लो या सजा के लिए तैयार रहो । सजा भी एसी की खुद सजा भी काँप जाए । परंतु उन ब्राह्मणो ने रातो-रात एक फैसला किया और पूरे 84 गाँव के हज्जारो ब्राह्मणो ने रातो-रात गाव खाली कर जो बलिदान दिया ऊस की मिसाल दूसरी कोई नही हो सकती । असली मे इस गांव को गाँव के दीवान सालम सिंह की नजर लग गई । सालम सिंह एक अय्याश दीवान था । वो था तो सिर्फ एक दीवान परंतु बड़ों का मुह लगा था । इस दीवान की नजर ब्राह्मणो की एक लड़की पर पड गई । वो इस तरह उतावला हुआ की सब भूल गया । और किसी भी तरह उसको पा लेना चाहता था । उसने ब्राह्मणो पर दबाव बनाना शुरू कर दिया नही मानने पर मनमाने कर लगा दिये इसके बाद भी बस न चलने पर उस लड़की के घर संदेशा भिजवा दिया की अगली पूर्णमासी तक या तो लड़की दे दो नही तो सुबह होते ही गाँव पर धावा बोल कर लड़की को उठा ले जाएगा । गाँव के ब्राह्मणो ने दिये गए समय पर ध्यान नही दिया ,ध्यान दिया तो दी गई धमकी पर । 84 गांवों के ब्राह्मणो ने मिलकर एक जगह बैठक की जंहा
माता का मंदिर था । सभी 84 गाँव वाले मंदिर के पास इकट्ठा हो गए । ब्राह्मणो की पंचायत मे एक आव3आज पर फैसला हुआ की कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नही देंगे । यह अत्याचार के खिलाफ न झुकने की जिद के साथ-साथ एक वर्ण संकर संतान के जन्म और एक एसी संतान जो कलंकित भी होती और उसके कलंकित भविष्य का विषय भी था । गाँव वालों ने रातों-रात 84 गाँव खाली कर दिये । और जाते-जाते दे गए एक श्राप की दोबारा इन घरों मे कोई बस नही पाएगा । वो गए तो लौट कर कभी नही आए ?
समय बीतने के साथ-साथ कई लोगों और सरकार ने भी इन गांवों को बसाने की कोशिश की परंतु कामयाब नही हो सके । जो भी उन घरो मे रहने की कोशिश करता बर्बाद हो जाता या एसी मुसीबत आती की किसी न किसी की जान लेकर ही जाती ।
सरकार की यह कोशिश तो असफल रही पर दूसरी कोशिश जरूर शुरू कर दी । इन तमाम गांवों की घेराबंदी कर दी और मुख्य द्वार पर एक चौकीदार को बैठा दिया । गाँव न तो कभी आबाद हुआ न ही कभी आबाद होगा , परंतु उजड़ने के बाद भी यह गाँव पर्यटकों की जेब से पैसे निकालकर सरकार की झोली जरूर भरता रहा । घर की बहू बेटी की इज्ज़त की खातिर इन पत्थर के घरो मे रहने वालों ने जो बलिदान दिया वो कोई दूसरा नही दे सकता । यह पत्थर बिखरा तो है परंतु टूटा अब भी नही है ।
कुछ विदेशी पर्यटक यहां इस उम्मीद में आते हैं कि पालीवालों ने जो सोना यहां दबा रखा था शायद वो उन्हें मिल जायेगा । इसलिए कुलधरा में जगह जगह खुदाई हुई पड़ी है । इसके अलावा शायद चोरी छिपे या घोषित रूप से यहां से पत्थरों को खींचकर निकाला जा रहा है और शहर के निर्माण स्थलों में इस्तेमाल किया जा रहा है । ऐसे वीरान गांवों को देखकर मन बेचैन हो जाता है । शायद कुलधरा का सही डॉक्यूमेन्टेशन हो सके और सरकार इसे एक पुरातात्विक धरोहर का दर्जा दिलवा पाए । अफ़सोस के पालीवालों के वैज्ञानिक रहस्य कुलधरा के अवशेषों के साथ ही गुम हो जाएंगे ।
कुलधरा पालीवालों ब्राह्मणो का गांव था और एक दिन अचानक यहां फल-फूल रहे पालीवाल ब्राह्मण अपनी इस सरज़मीं को छोड़कर अन्यत्र चले गये । उसके बाद से कुलधरा पर कोई बस नहीं सका । कोशिशें बहुत हुईं पर नाकाम हो गयीं । कुलधरा के अवशेष आज भी विशेषज्ञों और पुरातत्वविदों के अध्ययन का केंद्र हैं । कई मायनों में पालीवालों ब्राह्मणो ने कुलधरा को वैज्ञानिक आधार पर विकसित किया था ।
कुलधरा जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है ।कहते हैं कि पालीवाल समुदाय के इस इलाक़े में चौरासी गांव थे और यह उनमें से एक था । मेहनती और रईस पालीवाल ब्राम्हणों की कुलधार शाखा ने सन 1291 में तकरीबन छह सौ घरों वाले इस गांव को बसाया था । पालीवाल नाम दरअसल इसलिए पड़ा क्योंकि वो राजस्थान के पाली इलाक़े के रहने वाले थे । पालीवाल ब्राम्हण होते हुए भी बहुत ही उद्यमी समुदाय था । अपनी बुद्धिमत्ता, अपने कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने धरती पर सोना उगाया था । हैरत की बात ये है कि पाली से कुलधरा आने के बाद पालीवालों ने रेगिस्तानी सरज़मीं के बीचोंबीच इस गांव को बसाते हुए खेती पर केंद्रित समाज की परिकल्पना की थी । रेगिस्तान में खेती । पालीवालों के समृद्धि का रहस्य था । जिप्सम की परत वाली ज़मीन को पहचानना और वहां पर बस जाना । पालीवाल अपनी वैज्ञानिक सोच, प्रयोगों और आधुनिकता की वजह से उस समय में भी इतनी तरक्की कर पाए थे ।
पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था । और बड़ी शान से जीता था ।
पालीवालों ने सतह पर बहने वाले पानी या ज़मीन पर मौजूद पानी का सहारा नहीं लिया । बल्कि रेत में मौजूद पानी का इस्तेमाल किया । पालीवाल ऐसी जगह पर गांव बसाते थे जहां धरती के भीतर जिप्सम की परत हो । जिप्सम की परत बारिश के पानी को ज़मीन में अवशोषित होने से रोकती और इसी पानी से पालीवाल खेती करते । और ऐसी वैसी नहीं बल्कि जबर्दस्त फसल पैदा करते । पालीवालों के जल-प्रबंधन की इसी तकनीक ने थार रेगिस्तान को इंसानों और मवेशियों की आबादी या तादाद के हिसाब से दुनिया का सबसे सघन रेगिस्तान बनाया । पालीवालों ने ऐसी तकनीक विकसित की थी कि बारिश का पानी रेत में गुम नहीं होता था बल्कि एक खास गहराई पर जमा हो जाता था ।
कुलधरा में दरवाज़ों पर ताला नहीं लगता था । गांव का मुख्य-द्वार और गांव के घरों के बीच बहुत लंबा फ़ासला था । लेकिन ध्वनि-प्रणाली ऐसी थी कि मुख्य-द्वार से ही क़दमों की आवाज़ गांव तक पहुंच जाती थी ।
गांव के तमाम घर झरोखों के ज़रिए आपस में जुड़े थे इसलिए एक सिरे वाले घर से दूसरे सिरे तक अपनी बात आसानी से पहुंचाई जा सकती थी । घरों के भीतर पानी के कुंड, ताक और सीढि़यां कमाल के हैं । कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गये थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुज़रती थीं । कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे ।
ऐसा उन्नत और विकसित गांव एक दिन अचानक खाली कैसे हो गया ?
मिसालें तो बहुत मिलती हैं ,पर कुछ मिसालें याद की जाती हैं । क्योंकि वो अनोखी होती हैं । मिसाल सिर्फ एक शख्स की नही ,एक घर की नही , एक कुनबे की नही , एक गाँव की भी नही यह मिसाल है 84 गांवों के हजारों लोगों की है ।एक तरफ लड़की की इज्ज़त और दूसरी तरफ हज्जारों लोग ।गाँव के हज्जारो ब्राह्मणो के पास समय था तो सिर्फ एक रात का एक रात मे ही उनको यह तय करना था की या अपनी लड़की की इज्जत का सोदा कर लो या सजा के लिए तैयार रहो । सजा भी एसी की खुद सजा भी काँप जाए । परंतु उन ब्राह्मणो ने रातो-रात एक फैसला किया और पूरे 84 गाँव के हज्जारो ब्राह्मणो ने रातो-रात गाव खाली कर जो बलिदान दिया ऊस की मिसाल दूसरी कोई नही हो सकती । असली मे इस गांव को गाँव के दीवान सालम सिंह की नजर लग गई । सालम सिंह एक अय्याश दीवान था । वो था तो सिर्फ एक दीवान परंतु बड़ों का मुह लगा था । इस दीवान की नजर ब्राह्मणो की एक लड़की पर पड गई । वो इस तरह उतावला हुआ की सब भूल गया । और किसी भी तरह उसको पा लेना चाहता था । उसने ब्राह्मणो पर दबाव बनाना शुरू कर दिया नही मानने पर मनमाने कर लगा दिये इसके बाद भी बस न चलने पर उस लड़की के घर संदेशा भिजवा दिया की अगली पूर्णमासी तक या तो लड़की दे दो नही तो सुबह होते ही गाँव पर धावा बोल कर लड़की को उठा ले जाएगा । गाँव के ब्राह्मणो ने दिये गए समय पर ध्यान नही दिया ,ध्यान दिया तो दी गई धमकी पर । 84 गांवों के ब्राह्मणो ने मिलकर एक जगह बैठक की जंहा
माता का मंदिर था । सभी 84 गाँव वाले मंदिर के पास इकट्ठा हो गए । ब्राह्मणो की पंचायत मे एक आव3आज पर फैसला हुआ की कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नही देंगे । यह अत्याचार के खिलाफ न झुकने की जिद के साथ-साथ एक वर्ण संकर संतान के जन्म और एक एसी संतान जो कलंकित भी होती और उसके कलंकित भविष्य का विषय भी था । गाँव वालों ने रातों-रात 84 गाँव खाली कर दिये । और जाते-जाते दे गए एक श्राप की दोबारा इन घरों मे कोई बस नही पाएगा । वो गए तो लौट कर कभी नही आए ?
समय बीतने के साथ-साथ कई लोगों और सरकार ने भी इन गांवों को बसाने की कोशिश की परंतु कामयाब नही हो सके । जो भी उन घरो मे रहने की कोशिश करता बर्बाद हो जाता या एसी मुसीबत आती की किसी न किसी की जान लेकर ही जाती ।
सरकार की यह कोशिश तो असफल रही पर दूसरी कोशिश जरूर शुरू कर दी । इन तमाम गांवों की घेराबंदी कर दी और मुख्य द्वार पर एक चौकीदार को बैठा दिया । गाँव न तो कभी आबाद हुआ न ही कभी आबाद होगा , परंतु उजड़ने के बाद भी यह गाँव पर्यटकों की जेब से पैसे निकालकर सरकार की झोली जरूर भरता रहा । घर की बहू बेटी की इज्ज़त की खातिर इन पत्थर के घरो मे रहने वालों ने जो बलिदान दिया वो कोई दूसरा नही दे सकता । यह पत्थर बिखरा तो है परंतु टूटा अब भी नही है ।
कुछ विदेशी पर्यटक यहां इस उम्मीद में आते हैं कि पालीवालों ने जो सोना यहां दबा रखा था शायद वो उन्हें मिल जायेगा । इसलिए कुलधरा में जगह जगह खुदाई हुई पड़ी है । इसके अलावा शायद चोरी छिपे या घोषित रूप से यहां से पत्थरों को खींचकर निकाला जा रहा है और शहर के निर्माण स्थलों में इस्तेमाल किया जा रहा है । ऐसे वीरान गांवों को देखकर मन बेचैन हो जाता है । शायद कुलधरा का सही डॉक्यूमेन्टेशन हो सके और सरकार इसे एक पुरातात्विक धरोहर का दर्जा दिलवा पाए । अफ़सोस के पालीवालों के वैज्ञानिक रहस्य कुलधरा के अवशेषों के साथ ही गुम हो जाएंगे ।
good jank kar utshahit hua is ganwo ko dekhnai jarur jaunga
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