शिव पुत्राय श्री गणेशाय नमः
महादेवजी कहते हैं - नारद ! समस्त ब्राह्मणो के लिए जो अभ्क्ष्य है उसका वर्णन सुनो । तांबे के पात्र मे दूध पीना , जूठे बर्तन या अन्न मे घी लेकर खाना तथा नमक के साथ दूध पीना तत्काल गोमांस-भक्षण के समान है । कांसे के बर्तन मे रखा हुआ व जो द्विज उठकर बाए हाथ से जल पीता है , वह शराबी माना गया है और सभी धर्मो से बहिष्क्रत है । मुने ! भगवान श्री हरि को निवेदित न किया हुआ अन्न , खाने से बचा हुआ झूठा भोजन , पीने से शेष रहा जल - ये सब सर्वथा निषिद्ध हैं । कार्तिक मे बीगेन का फल , माघ मे मूली , तथा श्री हरि के शयनकाल ( चोमासे ) मे कलम्बी ( जलज शाक विशेष ) का शाक सर्वथा नही खाना चाहिए । सफ़ेद ताड़ , मसूर और मछली -ये सभी ब्राह्मणो के लिए समस्त देशो मे त्याज्य हैं । प्रतिपदा को कूष्माण्ड ( कोहड़ा ) नही खाना चाहिए ; क्यूंकी उस दिन वह अर्थ का नाश करने वाला होता है । द्वितीया को वृहती ( छोटे बेगन अथवा कटेहरी ) भोजन कर ले तो श्री हरि का स्मरण करना चाहिये । तृतीया को परवल शत्रुओं की वृदधी करने वाला होता है ; अतः उस दिन उसे नही खाना चाहिए । चतुर्थी को भोजन के उपयोग मे लायी हुयी मूली धन का नाश करने वाली होती है । पंचमी को वेल खाना कलंक लगने मे कारण होता है । षष्ठी को नीम की पत्ती चबायी जाय तो उस पाप से मनुष्य को पशु पक्षी की योनी मे जन्म लेना पड़ता है । सप्तमी को ताड़ का पल खाया जाय तो वह रोग बढ़ाने वाला तथा शरीर का नाश करने वाला होता है । अष्टमी को नतीयल का फल खाया जाय तो उससे बुद्धी का नाश होता है । नवमी को लोकी और दशमी को कलम्बी का शाक सर्वथा त्याज्य है । एकादशी को शिमबी ( सेम ) द्वादशी को पूतिका ( पोई ) और त्रयोदशी को बेगन खाने से पुत्र का नाश होता है । मांस सबके लिए सदा वर्जित है ।
पार्वण श्राद्ध और व्रत के दिन प्रातः कालिक स्नान के समय सारसो का तेल और पकाया हुआ तेल उपयोग मे लाया जाय तो उत्तम है । अमावस्या , पूर्णिमा , संक्रांति , चतुर्दशी और अष्टमी तिथीयो मे रवीवार ,श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल के तेल का सेवन निषिद्ध है । सभी वर्णो के लिए दिन मे अपनी स्त्री का सेवन वर्जित है । रात मे दही खाना , दिन मे दोनों संध्याओ के समय सोना तथा राजस्वला स्त्री के साथ समागम करना - ये नरक की प्राप्ति के कारण हैं । राजस्वला व कुलटा का अन्न नही खाना चाहिए ।
ब्रह्मर्षे ! शूद्र जातीय स्त्री से संबंध रखने वाले ब्राह्मण का अन्न भी खाने योग्य नही है । ब्रह्मन ! सूदखोर और गणक का अन्न भी नही खाना चाहिए । अग्रदानी ब्राह्मण ( महापात्र ) तथा चिकित्सक ( वेद्य अथवा डाक्टर ) का अन्न भी खाने योग्य नही है । अमावस्या तिथी और कृतिका नक्षत्र मे द्विजों के लिए क्षोर कर्म ( हजामत ) वर्जित है । जो मेथुन करके देवता तथा पितरो का तर्पण करता है , उसका वह जल नरक मे पड़ता है । यह सब ब्राह्मणो के लिए त्याज्य है ।
महादेवजी कहते हैं - नारद ! समस्त ब्राह्मणो के लिए जो अभ्क्ष्य है उसका वर्णन सुनो । तांबे के पात्र मे दूध पीना , जूठे बर्तन या अन्न मे घी लेकर खाना तथा नमक के साथ दूध पीना तत्काल गोमांस-भक्षण के समान है । कांसे के बर्तन मे रखा हुआ व जो द्विज उठकर बाए हाथ से जल पीता है , वह शराबी माना गया है और सभी धर्मो से बहिष्क्रत है । मुने ! भगवान श्री हरि को निवेदित न किया हुआ अन्न , खाने से बचा हुआ झूठा भोजन , पीने से शेष रहा जल - ये सब सर्वथा निषिद्ध हैं । कार्तिक मे बीगेन का फल , माघ मे मूली , तथा श्री हरि के शयनकाल ( चोमासे ) मे कलम्बी ( जलज शाक विशेष ) का शाक सर्वथा नही खाना चाहिए । सफ़ेद ताड़ , मसूर और मछली -ये सभी ब्राह्मणो के लिए समस्त देशो मे त्याज्य हैं । प्रतिपदा को कूष्माण्ड ( कोहड़ा ) नही खाना चाहिए ; क्यूंकी उस दिन वह अर्थ का नाश करने वाला होता है । द्वितीया को वृहती ( छोटे बेगन अथवा कटेहरी ) भोजन कर ले तो श्री हरि का स्मरण करना चाहिये । तृतीया को परवल शत्रुओं की वृदधी करने वाला होता है ; अतः उस दिन उसे नही खाना चाहिए । चतुर्थी को भोजन के उपयोग मे लायी हुयी मूली धन का नाश करने वाली होती है । पंचमी को वेल खाना कलंक लगने मे कारण होता है । षष्ठी को नीम की पत्ती चबायी जाय तो उस पाप से मनुष्य को पशु पक्षी की योनी मे जन्म लेना पड़ता है । सप्तमी को ताड़ का पल खाया जाय तो वह रोग बढ़ाने वाला तथा शरीर का नाश करने वाला होता है । अष्टमी को नतीयल का फल खाया जाय तो उससे बुद्धी का नाश होता है । नवमी को लोकी और दशमी को कलम्बी का शाक सर्वथा त्याज्य है । एकादशी को शिमबी ( सेम ) द्वादशी को पूतिका ( पोई ) और त्रयोदशी को बेगन खाने से पुत्र का नाश होता है । मांस सबके लिए सदा वर्जित है ।
पार्वण श्राद्ध और व्रत के दिन प्रातः कालिक स्नान के समय सारसो का तेल और पकाया हुआ तेल उपयोग मे लाया जाय तो उत्तम है । अमावस्या , पूर्णिमा , संक्रांति , चतुर्दशी और अष्टमी तिथीयो मे रवीवार ,श्राद्ध और व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल के तेल का सेवन निषिद्ध है । सभी वर्णो के लिए दिन मे अपनी स्त्री का सेवन वर्जित है । रात मे दही खाना , दिन मे दोनों संध्याओ के समय सोना तथा राजस्वला स्त्री के साथ समागम करना - ये नरक की प्राप्ति के कारण हैं । राजस्वला व कुलटा का अन्न नही खाना चाहिए ।
ब्रह्मर्षे ! शूद्र जातीय स्त्री से संबंध रखने वाले ब्राह्मण का अन्न भी खाने योग्य नही है । ब्रह्मन ! सूदखोर और गणक का अन्न भी नही खाना चाहिए । अग्रदानी ब्राह्मण ( महापात्र ) तथा चिकित्सक ( वेद्य अथवा डाक्टर ) का अन्न भी खाने योग्य नही है । अमावस्या तिथी और कृतिका नक्षत्र मे द्विजों के लिए क्षोर कर्म ( हजामत ) वर्जित है । जो मेथुन करके देवता तथा पितरो का तर्पण करता है , उसका वह जल नरक मे पड़ता है । यह सब ब्राह्मणो के लिए त्याज्य है ।
आदरणीय दुबे जी, नमस्कार। मैंने आपकी उपरोक्त लेख पढ़ा। क्या आप कृप्या कर यह बतला सकते है कि उपरोक्त वर्णन ब्रह्म वेवर्त पुराण के किस अध्याय से लिया गया है? मेरा email पता है ujjwal1980@gmail.com
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