ॐ श्री महागणेशाय नमः
जाकिर नाईक के कल्कि अवतार ( नरपिशाच मोबेमादा ) का वास्तविक स्वरूप ब्रह्मांड पुराण प्रतिसर्ग पर्व तृतीय खंड के अनुसार
सूतजी ने कहा - ऋषियों शलिकवाहन के वंश मे 10 राजा हुए । उन्होने 500 वर्ष तक शासन किया और स्वर्गवासी हुए । तदन्तर भूमंडल पर धर्म मर्यादा लुप्त होने लगी । शालीकवाहन के वंश मे अंतिम 10 वे राजा *भोजराज हुए । उन्होने देश की मर्यादा क्षीण होते देख दिग्विजय के लिए प्रस्थान किया । उनकी सेना 10000 थी और उनके साथ कालीदास व अन्य विद्वान ब्राह्मण भी थे । उन्होने सिंधु नदी को पार करके गांधार,मलेच्छया और कश्मीर के शठ राजाओ को परास्त किया तथा उनका कोश छीनकर उन्हे दंडित किया । उसी प्रसंग मे आचार्य व शिष्ट मण्डल के साथ मलेच्छया महामद (एक नर पिशाच मोबेमादा ) नाम का व्यक्ति उपष्टित हुआ । राजा भोज ने मरुस्थल मे विध्यमान महादेवजी का दर्शन किया । महादेवजी को पंचगव्य मिश्रित गंगाजल से स्नान कराकर चन्दन आदि से भक्तिभाव पूर्वक उनका पूजन किया और उनकी स्तुती की ।
भोजराज ने कहा - हे ! मरुस्थल मे निवास करने वाले तथा मलेछ्यो से गुप्त सच्चिदानंद स्वरूप वाले गिरिजापते !आप त्रिपुरासुर के विनाशक तथा नानाविध माया शक्ति के प्रवर्तक हैं । में आपकी शरण मे आया हूँ , आप मुझे अपना दास समझे । में आपको नमस्कार करता हूँ । इस स्तुती को सुनकर भगवान शिव ने राजा से कहा - ' हे भोजराज ! तुम्हें महकालेश्वर-तीर्थ मे जाना चाहिए । यह वाहयीक नाम की भूमी है , पर अब मलेच्च्यो से दूषित हो गई है । इस मरूँ प्रदेश मे आर्य धर्म हे ही नही। महामायावी त्रिपुरासुर यंहा देत्यराज बाली द्वारा प्रेषित किया गया है । मेरे द्वारा वरदान प्राप्त कर वह देत्य समुदाय को बढ़ा रहा है । वह अयोनिज ( नर पिशाच ) है । उसका नाम महामद ( काबेराबा का मोबेमादा ) है । राजन तुम्हें इस अनार्य देश मे नहीं आना चाहिए । मेरे कृपा से तुम विशुद्ध हो '
भगवान शिव के इन वचनो को सुनकर राजा भोज सेना के साथ अपने देश मे वापस चला आया । राजा भोज ने द्विज वर्ग के लिए संस्कृत वाणी का प्रचार किया और शूद्रो के प्राकृत भाषा चलाई । उन्होने 50 वर्ष तक राज्य किया और अंत मे स्वर्गलोक प्राप्त किया । उन्होने देश मर्यादा का स्थापन किया । विन्ध्यगिरी हिमालय के मध्य मे आर्यावर्त के पुण्य भूमि है , वंहा आर्यालोग रहते हैं ।
*भोजराज यंहा विक्रमादित्य के लिए प्रयोग हुआ दीखता है क्यूंकी विक्रमादित्य के समय ही कालिदास ब्राह्मण कवि थे विक्रमादित्य के नाम वाला एक बड़ा सा चक्र पहले काबा मे हुआ करता था जो पहले शिव मंदिर हुआ करता था इसके प्रमाण इस्तांबुल लाइब्रेरी के सायर औकुल नाम के ग्रंथ मे मिलने की बात सामने आई है हिन्दू ग्रंथ भी इस बात की पुष्टी करते हैं कि शुद्ध क्षत्रिय राजा धर्म स्थापना के उद्देश्य व इस विश्व मे फैले हुयी अराजकता को समाप्त करने के उद्देश्य से ब्राह्मणो के निर्देशानुसार विश्वविजय के लिए निकला करते थे जिनमे शालीकवाहन व विक्रमादित्य आदि महान राजा शामिल है जिनके नाम से शालीकवाहन शक संवत व विक्रम संवत आदि वर्षों की गढ़ना करने वाले संवत का नाम रख दिया जाता था ।
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