शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

महाभारत में पृथ्वी का पूरा मानचित्र हजारों वर्षों पहले

उपरोक्त मानचित्र  11 वीं शताब्दी में रामानुजाचार्य द्वारा महाभारत  के निम्नलिखित श्लोक को पढ्ने के बाद बनाया गया था-

सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥ यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।
                                                                                                                वेद व्यास -भीष्म पर्व -महाभारत

अर्थात
हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे महान शश(खरगोश) दिखायी देता है। अब यदि उपरोक्त संरचना को कागज पर बनाकर व्यवस्थित करे तो हमारी पृथ्वी का मानचित्र बन जाता है, जो हमारी पृथ्वी के वास्तविक मानचित्र से बहुत समानता दिखाता है।
                                            एक खरगोश और दो पत्तो का चित्र
                                   चित्र को उल्टा करने पर बना पृथ्वी का मानचित्र
                                              उपरोक्त मानचित्र ग्लोब में
 http://hi.wikipedia.org/wiki/पृथ्वी_का_हिन्दू_वर्णन