बुधवार, 20 जून 2012

आत्मा का विकास


                                                       विध्नकर्ता भगवान  श्री महागणेशजी की जय   


जिस तरह जीवन के क्रमिक विकास के कारण आज मनुष्य का अस्तित्व है ठीक उसी तरह आत्मा का भी विकास होता है आत्मा तरह-तरह के जीवो-निर्जीवो को शरीर के रूप मे धारण करती है और जब वह उस जीव के सभी कर्तव्यो को पुरी तरह निभा लेती है तब ही उसे आगे और अधिक उन्नत और विकसित जीवो के शरीर विकास के लिये प्राप्त होते है एक ही जीव मे अनेक वर्ण के जीव होते है और उसे प्रत्येक वर्ण के जीवो के शरीर क्रम से धारण करने होते हैं । इसी तरह मनुष्य रुपी जीव की अनेक जातियो और वर्ण को आत्मा के विकास के लिये प्राप्त करना जरूरी होता है । इस मोक्ष का कोई भी शार्ट्कट नही है ? और मोक्ष का अर्थ सिर्फ़ यह है कि आत्मा को इस धारती पर दुबारा जीवधारियो के शरीर धारण नही करने होगे परन्तु आत्मा को परमात्मा तक पहुचने के लिये कितना विकास करना होगा और किस तरह के कितने शरीर धारण करने होंगे इसका पुर्ण विवरण करने मे देवता भी असमर्थ हैं ? और इस धरती पर आत्मा के विकास के लिये जीवो की सभी जातियो और वर्णो का होना बहुत ही जरूरी है । और जो भी सन्त देवता और शास्त्र सभी को समान बताते है और मानते है ,वे सिर्फ़ हमको भ्रमित करने का प्रयास भर है ।आदि देव भगवान श्री महागणेशजी के इस धरती भगवान शिव के [पुत्र रूप मे अवतरित होने से पहले कर्मो से विमुख होकर मोक्ष आदि प्राप्त किया जा सकता था परन्तु शास्त्र बताते हैं कि भगवान गणेश कर्मो से विमुख होकर मोक्ष प्रप्ति के प्रयास करने वालो के मार्ग मे महा अवरोध उत्पन्न कर देते हैं ।

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