ॐ श्री गुरु गणेशाय नमः
आत्मा और शरीर , जंहा आत्मा अमर है और शरीर नाशवान ,परंतु इसके बाद भी दोनों एक दूसरे के पूरक है यदी कहा जाय तो शरीर ही अधिक महत्वपूर्ण है आत्मा से । आत्मा एक प्रोग्राम ( कार्य प्रणाली ) है और शरीर एक उपकरण है । जिस तरह प्रोग्राम कितना ही गुणवान या उपयोगी क्यूँ न हो जब तक उपकरण उस प्रोग्राम (कार्य प्रणाली ) के अनुकूल नही होगा तब तक उस महान प्रोग्राम का होना कोई अर्थ नही रखता । इसके उलट वो प्रोग्राम ( कार्या प्रणाली ) ही दोषपूर्ण हो जाएगा । एसा ही कुछ संबंध इस धरती पर प्रत्येक जीव मे भी है । कितनी ही महान आत्मा किसी भी जीव का शरीर क्यूँ न धारण कर ले जब तक उस जीव का शरीर शुभ अनुवांशिक गुणो से परिपूर्ण नही होगा , वो महान आत्मा भी अपना पूर्ण शुभ प्रभाव नही दिखा सकती । हिन्दू धर्म मे इस मानव शरीर को बढ़ते क्रम मे शुभ गुणो के प्रभाव से युक्त बनाने के लिए कई वैदिक नियम हमारे महान ऋषि-मुनियो ने अपने अनुभव ,ज्ञान और खोज के आधार पर बनाए हैं , जो युगों पुराने हैं । हिन्दू धर्म का सिर्फ एक ही वेदिक उद्देश्य रहा है मनुष्यों ही नही पशु-पक्षियो पेढ-पौधो ,अनाज और वनस्पतियों तक मे शुभ गुणो का विकास करना । इसके लिए कई नियम बनाए । और परम्पराओं और मान्यताओं मे उनको बदल दिया ।हिन्दू धर्म मे विवाह भी अपनी खुशी के लिए नही किया जाता । विवाह को भी सभी के शुभ के उद्देश्य को ध्यान मे रखकर नियमो के अनुसार किया जाता है । परंतु आज आधुनिक युग मे प्रत्येक मलेछ्य ( ईसाई और मुस्लिम ) धर्म के प्रभाव मे आकर आज सिर्फ अपनी खुशी का ध्यान रखता है उसकी लिए सिर्फ शरीर एक उपकरण है और वो उसका पूरा उपयोग सिर्फ अपनी खुशी और आराम के लिए करना चाहता है । चाहे आने आली पीढ़ी को इसके भयानक परिणाम ही क्यूँ न भोगने पड़े ?
बड़े-बड़े महान संत और ज्ञानी कहते हैं आत्मा अमर है आत्मा महान है । परंतु शरीर के विषय मे कुछ नही कहते ? क्योंकी कुछ जानते ही नही है ? क्या होते हैं शरीर के आनुवांशिक गुण वो शायद भूल गए हैं की मनुष्य को यह रूप न जाने कितने जीवों के रूप मे रहकर लगातार गुणो का विकास करते रहने के कारण प्राप्त हुआ है । वो कुछ अंडा पहले आया की मुर्गी जैसे सवालों का जवाब मांगते हैं ? वो या पूछते हैं पहले पुरुष आया की स्त्री । उनको समझना चाहिए यह विकास प्रक्रिया के कई चरणों का लगातार कई युगों तक पूर्ण होते रहनेके कारण हुआ है ।
जैसे मनुष्य का पूर्वज बंदर था , बंदर का पूर्वज कोई और पशु है । उसका कोई और है । यह आज का विज्ञान धीरे-धीरे समझ रहा है । और इस बात को प्रत्येक मनुष्य भी समझ जाएगा ।परंतु फिर भी एक सवाल है , क्या यह गुणो के प्रभाव को समझने तक मनुष्य के गुण इस लायक बचे रह पाएंगे की वो गुणो का विकास करने के लिए कुछ कर पाये ?
आत्मा से अधिक शरीर का शुभ गुणो से युक्त होना अधिक महत्वपूर्ण है आत्मा अमर है और परम प्रभु का अंश भी तो यदी किसी महान पुरुष की आत्मा को यदि किसी पशु मे डाल दिया जाय तो क्या होगा ? क्या तब भी वो महात्मा ही रहेगा ? नही यह कभी नही हो सकता ? उस महान आत्मा के शरीर बदलते ही उसके प्रभाव भी समाप्त हो जाएंगे । परंतु किसी दुराचारी की आत्मा भी यदि किसी शुभ कुल मे शुभ गुणो से युक्त शरीर को धारण करेगी तो शुभ गुणो के प्रभाव मे आकार आत्मा महान बन जाएगी । तो मेरी नजर मे आत्मा महान नही है ?आत्मा से अधिक महान है , गुणवान शरीर और हमे शरीर के गुणो की रक्षा और विकास करना चाहिए । यही हिन्दू धर्म है ।
धर्म ( हिन्दू ) कई युगो पुराना है धर्म पालकों ( हिन्दुओ ) को छोड़कर दुनिया के सभी उपधर्म संप्रदाय या जातियाँ क्रम विकास से जन्मती है और नष्ट हो जाती हैं परंतु धर्म पालक( हिन्दु ) कभी नही समाप्त होते , हिन्दुओ के धार्मिक ग्रंथो मे कल्पो का विवरण दिया हुआ है । हिन्दू धर्म के अनुसार चारों युगों का 1 चक्र 1000 बार पूरा होना एक कल्प होता है । हिन्दू धर्म मे चार युगो की गढ़ना की गई है सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग जो लगभग १२०००००० वर्ष या एक कल्प कहलाता है यह है हमारे ज्ञान-विज्ञान की प्राचीनता ।
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