गुरुवार, 18 नवंबर 2010

स्नान,स्नान के नियम और प्रकार


स्नान की आवश्यकता -
प्रातःकाल स्नान करने के पश्चात मनुष्य शुद्ध होकर जप,पूजा-पाठ आदी समस्त कर्मो के योग्य बनता है,अतएव प्रातः स्नान की प्रशंसा की जाती है । 9 छिद्रवाले अत्यंत मलिन शरीर से दिन-रात मल निकलता रहता है , अतः प्रातः काल  स्नान करने से शरीर की शुद्धी होती है ।

शुद्ध तीर्थ मे प्रातः काल स्नान करना चाहिए ,क्योंकि यह मलपूर्ण शरीर शुद्ध तीर्थ मे स्नान करने से शुद्ध होता है । प्रातः काल स्नान करने वाले के पास दुष्ट नही आते ।इस प्रकार द्रष्टफल-शरीर की स्वच्छता ,अद्रष्टफल-पापनाश तथा पुण्य की प्राप्ति ,यह दोनों प्रकार के फल मिलते हैं , अतः प्रातः स्नान करना चाहिए ।

रूप ,तेज,बल पवित्रता,आयु ,आरोग्य ,निर्लोभता ,दुः स्वप्न का नाश ,तप और मेधा  यह दस गुण प्रातः स्नान करने वाले को प्राप्त होते हैं ।

वेद-स्मृति मे कहे गए समस्त कार्य मूलक हैं ,अतएव लक्ष्मी ,पुष्टी व आरोग्य की व्रद्धी चाहने वाले मनुष्य को सदेव स्नान करना चाहिए ।

स्नान के भेद

(अ) मंत्र स्नान -आपो हि ष्ठा 'इत्यादि मंत्रो से मार्जन करना 

(ब) भोम स्नान - समस्त शरीर मे मिट्टी लगाना

(स) अग्नि स्नान -भस्म लगाना

(द) वायव्य स्नान -गाय के खुर की धुली लगाना

(ई) दिव्य स्नान -सूर्य किरण मे वर्षा के जल से स्नान 

(फ) वरुण स्नान -जल मे डुबकी लगाकर स्नान करना 

(ग) मानसिक स्नान -आत्म चिंतन करना 

यह सात प्रकार के स्नान हैं ।

अशक्तों के लिए स्नान - स्नान मे असमर्थ होने पर सिर के नीचे ही स्नान करना चाहिए अथवा गीले कपड़े से शरीर को पोछना भी एक प्रकार का स्नान है ।

स्नान की विधी - उषा की लाली से पहले ही स्नान करना उत्तम माना गया है । इससे प्रजापत्य का फल प्राप्त होता है ।तेल लगाकर तथा देह को मलमलकर नदी मे नहाना मना है । अतः नदी से दूर तट पर ही देह हाथ मलमलकर नहा ले , तब नदी मे गोता लगाए । शाश्त्रो  मे इसे मलापकर्षण स्नान कहा गया है ।यह अमंत्रक होता है । यह स्नान स्वास्थ और शुचिता दोनों के लिए आवश्यक है । देह मे मल रह जाने से शुचिता मे कमी आ जाती है । और रोम छिद्रों के न खुलने से स्वास्थ मे भी अवरोध होता है । इसलिए मोटे कपड़े से प्रत्येक अंग को रगड़-रगड़ कर स्नान करना चाहिए । निवीत होकर बेसन आदी से  यज्ञोपवीत भी स्वच्छ कर लें । इसके बाद शिखा बांधकर दोनों हाथों मे पवित्री पहनकर आचमन आदी से शुद्ध होकर दाहिने हाथ मे जल लेकर शाश्त्रानुसार संकल्प करे ।

संकल्प के पश्चात मंत्र पड़कर शरीर पर मिट्टी लगाएँ ।

इसके पश्चात गंगाजी की उन उक्तियों को बोलें ,जिनमे कह रखा गया है की स्नान के समय मेरा जंहा कंही कोई स्मरण करेगा ,वंहा के जल मे मै आ जाऊँगी ।

जल की सापेक्ष श्रेष्ठता -  कुए से निकले जल से झरने का जल ,झरने के जल से सरोवर का जल ,सरोवर के जल से नदी का जल , नदी के जल से तीर्थ का जल और तीर्थ के जल से गंगाजी का जल अधिक श्रेष्ठ है । 


जंहा धोबी का पाट रखा हो और कपड़ा धोते समय जंहा तक छींटे पड़ते हो वंहा तक का जलस्थान अपवित्र माना गया है । 

इसके पश्चात नाभी पर्यंत जल मे जाकर ,जल की ऊपरी सतह हटाकर ,कान औए नाक बंद कर प्रवाह की और या सूर्य की और मुख करके स्नान करें । तीन,पाँच ,सात या बारह डुबकियाँ लगाए । डुबकी लगाने स पहले शिखा खोल लें । गंगा के जल मे वस्त्र नही निचोड़ना चाहिए । जल मे मल मूत्र त्यागना और थूकना अनुचित है । शोचकाल वस्त्र पहनकर तीर्थ मे स्नान करना निषिद्ध है ।

  जंहा पहले गंगाजी और जल की शुद्धी के विषय मे जरा जरा सी बातो पर ध्यान दिया जाता था वंही नालो और फेक्ट्रियों का दूषित पानी छोड़ा जा रहा है ।

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