ॐ श्री महागणेशाय नमः
इस धरती पर अनेक जीव-जन्तू और निर्जीव ( पेड़-पौधे आदि ) हैं कहने वले तो पेड़-पौधो आदि को निर्जीव ही मानते हैं परन्तु इन पेड-पौधो मे भी जान होती है और उन्हे भी जीवो की ही तरह बेहतर देखभाल और प्यार की जरूरत होती है जिसके द्वारा वे पुष्ट होते हैं इसी बात को प्रमाणित किया था एक भारतीय वेज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु ने शायद आपमे से कुछ इस विषय मे जानते है यदि जानते है तो अच्छी बात है और जो नही जानते है वे जरूर ध्यान से पढें
जगदीशचंद्र बसु ने पेड़-पौधो मे भी जान होती है यह जानने के लिये दो अलग-अलग एक समान वातवरण मे एक समान क्षेत्र मे पेड़-पौधे लगाये और दोनो ही क्षेत्रो मे समान खाद समान पानी दिया जाता था परन्तु एक काम अलग-अलग किइया जाता था वो यह था क एक क्षेत्र के पेड़पौधो को गालियां दी जाती कोसा जाता और उन्हे यह बार बोला जाता कि वे बेकार हैं किसी लायक बही वे कभी अच्छा विकास नही कर सकते वे कभी गुण्वान नही हो स्कते और दुसरी तरफ़ इसके विपरीत बहुत तारीफ़ की जाती उत्साहित किया जाता तो कुछ समय बाद इस सब का यह प्रभाव हुआ कि जिन पेड़-पौधो के साथ अपमानित किया जाता था वे तो सूख गये और जिनकी प्रशंसा की जाती थी वे दो गुनी गती से बड़ने लगे
उपर इस उदाहरण को देने का यह अर्थ है कि इस धरती पर सभी जीव-जन्तुओ को भी इसी तरह प्रशंसा व उत्साहित करने वाली बातो और प्यार के प्रदर्शन आदि की आवश्यकता होती है वेद मन्त्रो मे भी ,पुजा के मन्त्रो आदि से भी यही सब प्रमाणित होता है उन्हे मन्त्रो मे देव्ताओ के समान माना जाता उनकी प्रशंसा की जाती सम्मान का प्रदर्शन किया जाता जो बिल्कुल सही प्रतीत होता है । अब मै यंहा हिंदुओ के देवी देवताओ की विरोध करने वाले उन मुर्खों से कुछ प्रश्न करना चाहता हुं
(१). हिन्दु जो जीवो और पेड़-पौधो तक को यदि देवता की तरह सम्मानित करते है तो इसमे बुराई क्या है ? यह तो प्रमाणित है कि प्रशंसा के रूप मे की जाने वाली पुजा आदि का निश्चय ही लाभ होता होगा और इसके द्वारा सभी लाभान्वित होते ही होंगे ।
(२). क्या वे सभी हिन्दु विरोधी इस विषय मे कुछ भी जानते नही हैं यदि वे वेद मन्त्रो आदि को किसी प्रमान द्वारा प्रमानित नही कर सकते तो अपना मुंह बंद क्युं नही रखते
(३). उन हिन्दु विरोधियो की उस एक ईश्वर की भक्ति मे क्या इतनी सामर्थ्य है कि वे निर्जन और रेत मे बदल चुके उन स्थानो को फ़िर से हरा-भरा व उपयोगी बना सकें
(४). वे हिन्दु विरोधी क्या यह चाहते हैं कि सारी दुनिया को ठीक उसी तरह रेगिस्तान बना दें जैसे उन्होने पहले हरे-भरे रह चुके कांधार, अफ़गान आदि को एक पिशाच की भांति नष्ट कर दिया और लगातार सारी दुनिया को उसी तरह बन्जर और उनुपयोगी बनाने मे रात दिन लगे हुये हैं
इन सभी हिन्दु विरोधीयों (अनार्य समाजी , मुसालेबीमान ,बुद्धु और किसाईयो ) से मै यह पूछना चाहता हुं कि क्या फ़ायदा है एस उस एक ईश्वर का राग अलापने का जिस तक तुम्हारी न तो पंहुच है , न ही तुम उसके योग्य हो । हिंदु विरोधी मुर्खो तुम्हारी योग्यता ही क्या है क्या है तुम्हारा ज्ञान और उस ईशवर की बनाई इस दुनिया के लिये क्या कर सकते हो और यदि नही कर सकते हो तो क्या फ़ायदा है तुम्हारी जिन्दगी का मै तो समझता हुं एसे लोग मैले मे पैदा होने वाले उन कीड़ो से भी गिरे हुये है वह कीड़ा कम से कम मैला खा कर उसे साफ़ तो कर देता है यदि दिमाग मे मैला न भरा हो तो सोचना जरूर इस बात को कि हिन्दुओ के पुर्वजो के ज्ञान के सामने तुम हो क्या
इस धरती पर अनेक जीव-जन्तू और निर्जीव ( पेड़-पौधे आदि ) हैं कहने वले तो पेड़-पौधो आदि को निर्जीव ही मानते हैं परन्तु इन पेड-पौधो मे भी जान होती है और उन्हे भी जीवो की ही तरह बेहतर देखभाल और प्यार की जरूरत होती है जिसके द्वारा वे पुष्ट होते हैं इसी बात को प्रमाणित किया था एक भारतीय वेज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु ने शायद आपमे से कुछ इस विषय मे जानते है यदि जानते है तो अच्छी बात है और जो नही जानते है वे जरूर ध्यान से पढें
जगदीशचंद्र बसु ने पेड़-पौधो मे भी जान होती है यह जानने के लिये दो अलग-अलग एक समान वातवरण मे एक समान क्षेत्र मे पेड़-पौधे लगाये और दोनो ही क्षेत्रो मे समान खाद समान पानी दिया जाता था परन्तु एक काम अलग-अलग किइया जाता था वो यह था क एक क्षेत्र के पेड़पौधो को गालियां दी जाती कोसा जाता और उन्हे यह बार बोला जाता कि वे बेकार हैं किसी लायक बही वे कभी अच्छा विकास नही कर सकते वे कभी गुण्वान नही हो स्कते और दुसरी तरफ़ इसके विपरीत बहुत तारीफ़ की जाती उत्साहित किया जाता तो कुछ समय बाद इस सब का यह प्रभाव हुआ कि जिन पेड़-पौधो के साथ अपमानित किया जाता था वे तो सूख गये और जिनकी प्रशंसा की जाती थी वे दो गुनी गती से बड़ने लगे
उपर इस उदाहरण को देने का यह अर्थ है कि इस धरती पर सभी जीव-जन्तुओ को भी इसी तरह प्रशंसा व उत्साहित करने वाली बातो और प्यार के प्रदर्शन आदि की आवश्यकता होती है वेद मन्त्रो मे भी ,पुजा के मन्त्रो आदि से भी यही सब प्रमाणित होता है उन्हे मन्त्रो मे देव्ताओ के समान माना जाता उनकी प्रशंसा की जाती सम्मान का प्रदर्शन किया जाता जो बिल्कुल सही प्रतीत होता है । अब मै यंहा हिंदुओ के देवी देवताओ की विरोध करने वाले उन मुर्खों से कुछ प्रश्न करना चाहता हुं
(१). हिन्दु जो जीवो और पेड़-पौधो तक को यदि देवता की तरह सम्मानित करते है तो इसमे बुराई क्या है ? यह तो प्रमाणित है कि प्रशंसा के रूप मे की जाने वाली पुजा आदि का निश्चय ही लाभ होता होगा और इसके द्वारा सभी लाभान्वित होते ही होंगे ।
(२). क्या वे सभी हिन्दु विरोधी इस विषय मे कुछ भी जानते नही हैं यदि वे वेद मन्त्रो आदि को किसी प्रमान द्वारा प्रमानित नही कर सकते तो अपना मुंह बंद क्युं नही रखते
(३). उन हिन्दु विरोधियो की उस एक ईश्वर की भक्ति मे क्या इतनी सामर्थ्य है कि वे निर्जन और रेत मे बदल चुके उन स्थानो को फ़िर से हरा-भरा व उपयोगी बना सकें
(४). वे हिन्दु विरोधी क्या यह चाहते हैं कि सारी दुनिया को ठीक उसी तरह रेगिस्तान बना दें जैसे उन्होने पहले हरे-भरे रह चुके कांधार, अफ़गान आदि को एक पिशाच की भांति नष्ट कर दिया और लगातार सारी दुनिया को उसी तरह बन्जर और उनुपयोगी बनाने मे रात दिन लगे हुये हैं
इन सभी हिन्दु विरोधीयों (अनार्य समाजी , मुसालेबीमान ,बुद्धु और किसाईयो ) से मै यह पूछना चाहता हुं कि क्या फ़ायदा है एस उस एक ईश्वर का राग अलापने का जिस तक तुम्हारी न तो पंहुच है , न ही तुम उसके योग्य हो । हिंदु विरोधी मुर्खो तुम्हारी योग्यता ही क्या है क्या है तुम्हारा ज्ञान और उस ईशवर की बनाई इस दुनिया के लिये क्या कर सकते हो और यदि नही कर सकते हो तो क्या फ़ायदा है तुम्हारी जिन्दगी का मै तो समझता हुं एसे लोग मैले मे पैदा होने वाले उन कीड़ो से भी गिरे हुये है वह कीड़ा कम से कम मैला खा कर उसे साफ़ तो कर देता है यदि दिमाग मे मैला न भरा हो तो सोचना जरूर इस बात को कि हिन्दुओ के पुर्वजो के ज्ञान के सामने तुम हो क्या
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