भगवान श्री गणेशजी को प्रणाम
हम ब्राह्मणो की एक पीडी से दुसरी पीडी सुनती आ रही है कि मुगल आक्रमणकारियो का सामना करने के लिये ब्राह्मणो ने ही अपने सबसे बडे पुत्र का लगातार बलिदान देते हुये सिख संप्रदाय की स्थापना की है , परन्तु आज सिख यह भूल चुके है , वे यह मानने के लिये तैय्यार ही नही है कि सिख ब्राह्मणो की वन्शज है ? और सिख स्म्प्रदाय की स्थापना हिन्दुओ की रक्षा के लिये की गई थी । परन्तु हम ब्राह्मण तो यह जानते ही है और इसके प्रमाण भी है ।
सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्म और माता पिता से स्म्बन्धित जानकारी को यदि आप देखे तो आप भी समझ जायेगे कि पुर्व मे सिख शुद्ध ब्राह्मण ही थे गुरु नानक के जन्म से संबन्धित इस जान्कारी को देखिये
(१). हिन्दु विक्रम संवत के प्रयोग से सिख स्म्प्रदाय का हिन्दु प्रमाणित होना :- गुरू नानक देव या नानक देव सिखों के प्रथम गुरू थे । गुरु नानक देवजी का प्रकाश (जन्म) 15 अप्रैल 1469 ई. (वैशाख सुदी 3, संवत् 1526 विक्रमी) में तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ। सुविधा की दृष्टि से गुरु नानक का प्रकाश उत्सव कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। तलवंडी अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। तलवंडी पाकिस्तान के लाहौर जिले से 30 मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
(२). गुरु नानक के पिता का ब्राह्मण होना :- नानकदेवजी के जन्म के समय प्रसूति गृह अलौकिक ज्योत से भर उठा। शिशु के मस्तक के आसपास तेज आभा फैली हुई थी, चेहरे पर अद्भुत शांति थी। पिता बाबा कालूचंद्र बेदी ( कंही कालुचन्द्र मेहता तो कंही कालुचन्द्र मेहता पुर्व मे दोनो ही ब्राह्मण हुआ करते थे )और माता त्रिपाता ने बालक का नाम नानक रखा। गाँव के पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब बालक के बारे में सुना तो उन्हें समझने में देर न लगी कि इसमें जरूर ईश्वर का कोई रहस्य छुपा हुआ है।
(३). गुरु नानक देव का एक ब्राह्मण द्वारा शिक्षा दिया जाना :-बचपन से ही नानक के मन में आध्यात्मिक भावनाएँ मौजूद थीं। पिता ने पंडित हरदयाल के पास उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। पंडितजी ने नानक को और ज्ञान देना प्रारंभ किया तो बालक ने अक्षरों का अर्थ पूछा। पंडितजी निरुत्तर हो गए। नानकजी ने क से लेकर ड़ तक सारी पट्टी कविता रचना में सुना दी। पंडितजी आश्चर्य से भर उठे।
(४). नानक का जनेउ ( उपनयन ) संस्कार होना हिन्दुत्व की पह्चान :-जब नानक का जनेऊ संस्कार होने वाला था तो उन्होंने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि अगर सूत के डालने से मेरा दूसरा जन्म हो जाएगा, मैं नया हो जाऊँगा, तो ठीक है। लेकिन अगर जनेऊ टूट गया तो?
( यंहा यह भी ध्यान देने वाली बात है कि गुरु नानक देव के उपनयन मे सूत का जनेउ ( उपनयन ) पहनाया जा रहा था । सूत का जनेउ वेदिक नियमानुसार सिर्फ़ ब्राह्मणो को ही पहनाया जा सकता है । दूसरे वर्णो जैसे क्षत्रियो का सन का वेश्यो का भेड एके बाल का आदि होता है )
हम ब्राह्मणो की एक पीडी से दुसरी पीडी सुनती आ रही है कि मुगल आक्रमणकारियो का सामना करने के लिये ब्राह्मणो ने ही अपने सबसे बडे पुत्र का लगातार बलिदान देते हुये सिख संप्रदाय की स्थापना की है , परन्तु आज सिख यह भूल चुके है , वे यह मानने के लिये तैय्यार ही नही है कि सिख ब्राह्मणो की वन्शज है ? और सिख स्म्प्रदाय की स्थापना हिन्दुओ की रक्षा के लिये की गई थी । परन्तु हम ब्राह्मण तो यह जानते ही है और इसके प्रमाण भी है ।
सिख संप्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्म और माता पिता से स्म्बन्धित जानकारी को यदि आप देखे तो आप भी समझ जायेगे कि पुर्व मे सिख शुद्ध ब्राह्मण ही थे गुरु नानक के जन्म से संबन्धित इस जान्कारी को देखिये
(१). हिन्दु विक्रम संवत के प्रयोग से सिख स्म्प्रदाय का हिन्दु प्रमाणित होना :- गुरू नानक देव या नानक देव सिखों के प्रथम गुरू थे । गुरु नानक देवजी का प्रकाश (जन्म) 15 अप्रैल 1469 ई. (वैशाख सुदी 3, संवत् 1526 विक्रमी) में तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ। सुविधा की दृष्टि से गुरु नानक का प्रकाश उत्सव कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। तलवंडी अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। तलवंडी पाकिस्तान के लाहौर जिले से 30 मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
(२). गुरु नानक के पिता का ब्राह्मण होना :- नानकदेवजी के जन्म के समय प्रसूति गृह अलौकिक ज्योत से भर उठा। शिशु के मस्तक के आसपास तेज आभा फैली हुई थी, चेहरे पर अद्भुत शांति थी। पिता बाबा कालूचंद्र बेदी ( कंही कालुचन्द्र मेहता तो कंही कालुचन्द्र मेहता पुर्व मे दोनो ही ब्राह्मण हुआ करते थे )और माता त्रिपाता ने बालक का नाम नानक रखा। गाँव के पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब बालक के बारे में सुना तो उन्हें समझने में देर न लगी कि इसमें जरूर ईश्वर का कोई रहस्य छुपा हुआ है।
(३). गुरु नानक देव का एक ब्राह्मण द्वारा शिक्षा दिया जाना :-बचपन से ही नानक के मन में आध्यात्मिक भावनाएँ मौजूद थीं। पिता ने पंडित हरदयाल के पास उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। पंडितजी ने नानक को और ज्ञान देना प्रारंभ किया तो बालक ने अक्षरों का अर्थ पूछा। पंडितजी निरुत्तर हो गए। नानकजी ने क से लेकर ड़ तक सारी पट्टी कविता रचना में सुना दी। पंडितजी आश्चर्य से भर उठे।
(४). नानक का जनेउ ( उपनयन ) संस्कार होना हिन्दुत्व की पह्चान :-जब नानक का जनेऊ संस्कार होने वाला था तो उन्होंने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि अगर सूत के डालने से मेरा दूसरा जन्म हो जाएगा, मैं नया हो जाऊँगा, तो ठीक है। लेकिन अगर जनेऊ टूट गया तो?
( यंहा यह भी ध्यान देने वाली बात है कि गुरु नानक देव के उपनयन मे सूत का जनेउ ( उपनयन ) पहनाया जा रहा था । सूत का जनेउ वेदिक नियमानुसार सिर्फ़ ब्राह्मणो को ही पहनाया जा सकता है । दूसरे वर्णो जैसे क्षत्रियो का सन का वेश्यो का भेड एके बाल का आदि होता है )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें