ॐ श्री महागणेशाय नमः
क्या नही जानते कि जिस अरब जिसे अर्बस्तान ( श्रेष्ठ घोड़ो का स्थान ) कहा जाता था जंहा की हरियाली-खुशहाली के कारण वंहा के घोड़े प्रसिद्ध थे जब वंहा ब्राह्मण निवास किया करते थे परन्तु आज वंहा न खाने को अन्न है न पीने को पानी आज जंहा मुसलमानो आ सर्वश्रेष्ठ स्थान काबा है जंहा कहा जाता है कि बहुत पवित्र स्थान है और सारी दुनिया के मुसलमान वंहा एक बार जरूर जाते है परन्तु यदि वंहा वास्तव मे किसी के आराध्य का स्थान है तो जो पूर्व मे हरा भरा था वह स्थान आज रेत का ढेर क्युं है वंहा की सरस्वती नदी भी क्युं सूख गई यदि वास्तव मे वह पवित्र स्थान है तो क्युं नही पुकारते अपने अल्लाह को जिससे वह उस स्थान को पहले की ही तरह हरा भरा कर दे । अब उस स्थान मे कोई पवित्रता नही बाकी रह गई है देवता भे उस स्थान को त्याग चुके है । अब तो यदि वह काबा भी भूकम्प से धूल मे मिल जाय तो कोई आश्चर्य की बात नही होगी क्युंकि अब ब्राह्मण वंहा निवास नही करते वेदो मे भी कहा गया है कि
य एनं हन्ति मृदुं मन्यमानो देवपीयुर्धन्कामो न चित्तात् ।
सं तस्येन्द्रो हृदयेऽग्निमिन्ध उभे एन्म द्विष्टो नभसि चरन्तम्॥ अथर्व ५-१८-५॥
धन अभिलाषी जो मनुष्य ब्राह्मण को कोमल समझकर बिना विचारे उसको विनष्ट करना चाहते हैं , वे देवो की ही हिंसा करने वाले होते हैं । एसे पापी के हृदय मे इन्द्रदेव अग्नि प्रज्ज्वलित करते हैं ,एसे विचरते हुए मनुष्य से द्यावा-पृथवी विद्वेष करती है ।
तद् वै राष्ट्रमा स्रवति नावं भिन्नामिवोदम् ।
ब्रह्माणं यत्र हिम्सति तद् राष्ट्र हन्ति दुच्छुना ॥अथर्व ५-१९-८॥
जिस राष्ट्र मे ब्राह्मण की हिंसा होती है ,उस राष्ट्र को आपत्ती विनष्ट कर देती है । जिस प्रकार जल टूटी हुई नौका को डुबो देता है , उसी प्रकार पाप उस राष्ट्र को डुबो देता है ।
विषमेतद देवकृतं राजा वरुणोऽब्रवीत् ।
न ब्राह्मणस्य गां जग्ध्वा राष्ट्रे जागार कश्च्न॥अथर्व ५-१९-१०॥
राजा वरुण कहते हैं कि ब्राह्मण की संपती हरण करना देवो द्वारा निर्मित विष के समान है । ब्राह्मण का धन हड़प करके राष्ट्र मे कोई जागता ( जीवित या भले-बुरे का ज्ञान ) नही रहता
अश्रुणि कृपमाणस्य यानि जीतस्य वावृतुः ।
तं वै ब्रह्मज्य ते देवा अपां भागमधारयन् ॥ अथर्व ५-१९-१३॥
हे ब्राह्मणो को पीड़ित करने वालो ! दुर्बल तथा जीते गये ब्राह्मणो के जो आंसु बहते है ,देवो ने आपके लिये वही जल का भाग निहित किया है ।
येन मृतं स्नप्यन्ति श्मश्रूणि येनोन्दते ।
तं वै ब्रह्मज्य ते देवा अपां भाग्मधारयन् ॥अथर्व ५-१९-१४॥
हे ब्राह्मणो को पीड़ित करने वालो ! जिस जल से मृत व्यक्ति को स्नान कराते है तथा जिससे मूछ के बाल गीला करते हैं , देवो ने आपके लिये उतने ही जल का भाग निश्चित किया है ।
न वर्ष मैत्रावरुणं ब्रह्मज्यमभिवर्ष्ति ।
नास्मै समितिः कल्पते न मित्रं नयते वशम् ॥अथर्व ५-१९-१५॥
सूर्य और वरुण द्वारा प्रेरित वृष्टी ब्राह्मण-पीड़क के उपर नही गिरती और उसको सभा सहमती नही प्रदान करती , वह अपने मित्रो को अपने वशीभूत ( या मित्रता योग्य ) नही कर सकता
अष्टापदी चतुरक्षी चतुः श्रोता चतुर्हनुः ।
द्वयास्या द्विजिह्रा भूत्वा सा राष्ट्रमव धूनुते ब्रह्मज्यस्य ॥अथर्व ५-१९-७॥
ब्राह्मण पर डाली गई विपत्ती , उस पीड़ित करने वाले राजा के राज्य को आठ पैरवाली ,चार आंख वाली , चार कान वाली ,चार ठोड़ी दो मुख वाली तथा दो जिह्रा वाली ( अर्थात कई गुनी घातक ) होकर हिला देती है ।
विषमेतद देवकृतं राजा वरुणोऽब्रवीत् ।
न ब्राह्मणस्य गां जग्ध्वा राष्ट्रे जागार कश्च्न॥अथर्व ५-१९-१०॥
राजा वरुण कहते हैं कि ब्राह्मण की संपती हरण करना देवो द्वारा निर्मित विष के समान है । ब्राह्मण का धन हड़प करके राष्ट्र मे कोई जागता ( जीवित या भले-बुरे का ज्ञान ) नही रहता
आज क्या ब्राह्मण द्रोहियो को यह सारे लक्षण दिखाई नही दे रहे हैं क्या वे नही देख रहे कि कैसा हाल है बांगलादेश के निवासियो का भूखे मर रहे है न खाने को है न रहने को जिस कारण भाग-भाग कर वे आसाम मे आ रहे है यह हरा भरा स्थान उनको स्वर्ग सा दिखता है यही सब काश्मीर मे हो चुका है यही सब पहले अरब मे हो चुका है और इसी कारण अरब से आक्रमणकारी हरे-भरे भारत मे आये क्युंकि यह उनको स्वर्ग सा दिख रहा था और उस स्वर्ग को आज उन दुष्ट आक्रमणकारियो ने पाकिस्तान , कांधार आदि रेत के ढेरो मे बदल दिया है सिर्फ़ तेल के भरोसे जीते है और कुछ खाने को नही है इसीलिये आतंक के सहारे पेट भर रहे हैं क्या यही भारतवासी भी इस देश मे देखना चाहते हो । एक बात सदा याद रखो तुम सभी ब्राह्मणद्रोही ब्राह्मण को मिटाने के प्रयास मे समूल नष्ट हो जाओगे परन्तु ब्राह्मण को मिटा न सकोगे कोई देव साथ नही देगा कोई व्रत काम नही करेगा क्या कोई इस धरती के देवता को भी मिटा सका है
क्या नही जानते कि जिस अरब जिसे अर्बस्तान ( श्रेष्ठ घोड़ो का स्थान ) कहा जाता था जंहा की हरियाली-खुशहाली के कारण वंहा के घोड़े प्रसिद्ध थे जब वंहा ब्राह्मण निवास किया करते थे परन्तु आज वंहा न खाने को अन्न है न पीने को पानी आज जंहा मुसलमानो आ सर्वश्रेष्ठ स्थान काबा है जंहा कहा जाता है कि बहुत पवित्र स्थान है और सारी दुनिया के मुसलमान वंहा एक बार जरूर जाते है परन्तु यदि वंहा वास्तव मे किसी के आराध्य का स्थान है तो जो पूर्व मे हरा भरा था वह स्थान आज रेत का ढेर क्युं है वंहा की सरस्वती नदी भी क्युं सूख गई यदि वास्तव मे वह पवित्र स्थान है तो क्युं नही पुकारते अपने अल्लाह को जिससे वह उस स्थान को पहले की ही तरह हरा भरा कर दे । अब उस स्थान मे कोई पवित्रता नही बाकी रह गई है देवता भे उस स्थान को त्याग चुके है । अब तो यदि वह काबा भी भूकम्प से धूल मे मिल जाय तो कोई आश्चर्य की बात नही होगी क्युंकि अब ब्राह्मण वंहा निवास नही करते वेदो मे भी कहा गया है कि
य एनं हन्ति मृदुं मन्यमानो देवपीयुर्धन्कामो न चित्तात् ।
सं तस्येन्द्रो हृदयेऽग्निमिन्ध उभे एन्म द्विष्टो नभसि चरन्तम्॥ अथर्व ५-१८-५॥
धन अभिलाषी जो मनुष्य ब्राह्मण को कोमल समझकर बिना विचारे उसको विनष्ट करना चाहते हैं , वे देवो की ही हिंसा करने वाले होते हैं । एसे पापी के हृदय मे इन्द्रदेव अग्नि प्रज्ज्वलित करते हैं ,एसे विचरते हुए मनुष्य से द्यावा-पृथवी विद्वेष करती है ।
तद् वै राष्ट्रमा स्रवति नावं भिन्नामिवोदम् ।
ब्रह्माणं यत्र हिम्सति तद् राष्ट्र हन्ति दुच्छुना ॥अथर्व ५-१९-८॥
जिस राष्ट्र मे ब्राह्मण की हिंसा होती है ,उस राष्ट्र को आपत्ती विनष्ट कर देती है । जिस प्रकार जल टूटी हुई नौका को डुबो देता है , उसी प्रकार पाप उस राष्ट्र को डुबो देता है ।
विषमेतद देवकृतं राजा वरुणोऽब्रवीत् ।
न ब्राह्मणस्य गां जग्ध्वा राष्ट्रे जागार कश्च्न॥अथर्व ५-१९-१०॥
राजा वरुण कहते हैं कि ब्राह्मण की संपती हरण करना देवो द्वारा निर्मित विष के समान है । ब्राह्मण का धन हड़प करके राष्ट्र मे कोई जागता ( जीवित या भले-बुरे का ज्ञान ) नही रहता
अश्रुणि कृपमाणस्य यानि जीतस्य वावृतुः ।
तं वै ब्रह्मज्य ते देवा अपां भागमधारयन् ॥ अथर्व ५-१९-१३॥
हे ब्राह्मणो को पीड़ित करने वालो ! दुर्बल तथा जीते गये ब्राह्मणो के जो आंसु बहते है ,देवो ने आपके लिये वही जल का भाग निहित किया है ।
येन मृतं स्नप्यन्ति श्मश्रूणि येनोन्दते ।
तं वै ब्रह्मज्य ते देवा अपां भाग्मधारयन् ॥अथर्व ५-१९-१४॥
हे ब्राह्मणो को पीड़ित करने वालो ! जिस जल से मृत व्यक्ति को स्नान कराते है तथा जिससे मूछ के बाल गीला करते हैं , देवो ने आपके लिये उतने ही जल का भाग निश्चित किया है ।
न वर्ष मैत्रावरुणं ब्रह्मज्यमभिवर्ष्ति ।
नास्मै समितिः कल्पते न मित्रं नयते वशम् ॥अथर्व ५-१९-१५॥
सूर्य और वरुण द्वारा प्रेरित वृष्टी ब्राह्मण-पीड़क के उपर नही गिरती और उसको सभा सहमती नही प्रदान करती , वह अपने मित्रो को अपने वशीभूत ( या मित्रता योग्य ) नही कर सकता
अष्टापदी चतुरक्षी चतुः श्रोता चतुर्हनुः ।
द्वयास्या द्विजिह्रा भूत्वा सा राष्ट्रमव धूनुते ब्रह्मज्यस्य ॥अथर्व ५-१९-७॥
ब्राह्मण पर डाली गई विपत्ती , उस पीड़ित करने वाले राजा के राज्य को आठ पैरवाली ,चार आंख वाली , चार कान वाली ,चार ठोड़ी दो मुख वाली तथा दो जिह्रा वाली ( अर्थात कई गुनी घातक ) होकर हिला देती है ।
विषमेतद देवकृतं राजा वरुणोऽब्रवीत् ।
न ब्राह्मणस्य गां जग्ध्वा राष्ट्रे जागार कश्च्न॥अथर्व ५-१९-१०॥
राजा वरुण कहते हैं कि ब्राह्मण की संपती हरण करना देवो द्वारा निर्मित विष के समान है । ब्राह्मण का धन हड़प करके राष्ट्र मे कोई जागता ( जीवित या भले-बुरे का ज्ञान ) नही रहता
आज क्या ब्राह्मण द्रोहियो को यह सारे लक्षण दिखाई नही दे रहे हैं क्या वे नही देख रहे कि कैसा हाल है बांगलादेश के निवासियो का भूखे मर रहे है न खाने को है न रहने को जिस कारण भाग-भाग कर वे आसाम मे आ रहे है यह हरा भरा स्थान उनको स्वर्ग सा दिखता है यही सब काश्मीर मे हो चुका है यही सब पहले अरब मे हो चुका है और इसी कारण अरब से आक्रमणकारी हरे-भरे भारत मे आये क्युंकि यह उनको स्वर्ग सा दिख रहा था और उस स्वर्ग को आज उन दुष्ट आक्रमणकारियो ने पाकिस्तान , कांधार आदि रेत के ढेरो मे बदल दिया है सिर्फ़ तेल के भरोसे जीते है और कुछ खाने को नही है इसीलिये आतंक के सहारे पेट भर रहे हैं क्या यही भारतवासी भी इस देश मे देखना चाहते हो । एक बात सदा याद रखो तुम सभी ब्राह्मणद्रोही ब्राह्मण को मिटाने के प्रयास मे समूल नष्ट हो जाओगे परन्तु ब्राह्मण को मिटा न सकोगे कोई देव साथ नही देगा कोई व्रत काम नही करेगा क्या कोई इस धरती के देवता को भी मिटा सका है
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