ब्राह्मण स्वरूप भगवान श्री गणेशजी को नमन
आओ ब्राह्मण बने । हम ब्राह्मण सभी वर्णो व मलेच्छ्यो ( मुसल्मान और ईसाई ) , मूलनिवासी आदि जातियो का आवाहन करते है कि वे उपर उठे और ब्राह्मण बने । परन्तु इससे पहले यह जानले कि आप ब्राह्मण कैसे बन सकते है । एसा नही है, कि आपने माना कि आप ब्राह्मण है ? और ब्राह्मण बन गये । ब्राह्मन सिर्फ़ कर्म से नही बना जा सकता आपको वन्श से भी ब्राह्मण बनना होगा । ब्राह्मणत्व का बीज आप अपने वन्श मे बोयेगे और आपका वन्श ब्राह्मणत्व को प्राप्त होता जायेगा । ब्राह्मण बनने के लिये आपके वन्श को एक-एक कर चारो वर्णो को अपने कर्मो और वन्श की शुद्धता द्वारा लगातार विकसित होते हुये पाना होगा । ब्राह्मण बनने के लिये क्या जरूरी है ? और किस तरह कोई भी वर्ण मलेच्छ्य ( मुसलमान और ईसाई ) से शुद्र , शुद्र से वेश्य , वेश्य से क्षत्रिय और क्षत्रिय से ब्राह्मण बन सकता है ,यह आपको समझना जरूरी है ?
ब्राह्मण उसे माना जायेगा
(१). जिसकी माँ की ओर से, पिता की ओर से सात पीढि़याँ शुद्ध हों ।
(२). जिसके कुल में सात पीढि़यों में वर्ण संकर न हुआ हो ।
(शुद्ध और वर्ण संकर के विषय मे नीचे देखे )
शुद्ध हो :-ब्राह्मणो मे ब्राह्मण उसे माना जाता है जो शुद्ध हो अर्थात जिस पुत्र ने अपनी माता के गोत्र व पिता के गोत्र वाली कन्या से विवाह न किया हो साथ वह कन्या माता की पिछली सात पीडियो से रक्त सम्बन्ध न रखती हो या खून का रिश्ता न हो वह ब्राह्मण शुद्ध है ।
वर्ण संकर न हो :-वर्ण संकर के दो भेद ( जिस ब्राह्मण के पिता ने ब्राह्मण कन्या से ही विवाह किया हो यदि अन्य वर्ण या जाती मे विवाह किया है तो वह वर्ण संकर कहलायेगा । साथ ही क्षत्रिय वर्ण से नीचे के वर्ण या अन्य मलेच्छय ( मुसलमान या ईसाई ) या आदिवासी जाती मे विवाह किया है तो सन्तान माता की जाती का होगा )
(अ)वर्ण अनुलोम क्रम :- पुरुष द्वारा अपने वर्ण से नीचे के वर्ण मे विवाह करने से जन्म लेने वाली सन्तान वर्ण अनुलोम संतान कहलाती है ।
(ब) वर्ण विलोम क्रम :- कन्या द्वारा अपने वर्ण से नीचे के वर्ण मे विवाह करने से जन्म लेने वाली सन्तान वर्ण विलोम संतान कहलाती है ।
इसी नियम के आधार पर कोई भी मलेच्छय ( मुसलमान व ईसाई ) , मूलनिवासी या कोई भी अन्य जाती उपर उठते हुये किसी भी वर्ण को प्राप्त कर सकती है ।
जो भी वर्ण या जाती उपर उठना चाहती है उस जाती के पुत्र को स्वयं को आधार ( गोत्र प्रवर्तक पुरुष ) मानते हुये कोई भी शुभ सूचक परन्तु सभी से भिन्न नाम रखकर वन्श गोत्र निर्धारित करना होगा ।
एक बार गोत्र निर्धारित हो जाने पर भविष्य मे होने वाली सभी संतानो का यही गोत्र होगा जो पह्चान होगी उनके वंश के आधार पुरुष की । भविष्य मे जब भी विवाह होगा उसके वंशज अपनी जाती मे ही विवाह करेंगे और गोत्रादि नियमो का पालन करेंगे ।
अब यदि कोई मलेच्छ्य ( मुसलमान और ईसाई ) , मूलनिवासी या कोई अन्य जाती ब्राह्मण बनना चाहता है तो पहले उसे शुद्र वर्ण को सफ़लता पुर्वक प्राप्त करना होगा । शुद्र बनने के लिये उपर दिया गया नियम ही लागू होगा । उदाहरण के लिये समझाकर लिखता हुं कोई शुद्र कैसे अपने वर्ण से उपर उठते हुये वेश्य वर्ण मे प्रतिष्ठित हो ।
शुद्र उसे माना जायेगा
(१). जिसकी माँ की ओर से, पिता की ओर से सात पीढि़याँ शुद्ध हों ।
(२). जिसके कुल में सात पीढि़यों में वर्ण संकर न हुआ हो ।
(शुद्ध और वर्ण संकर के विषय मे नीचे देखे )
शुद्ध हो :-शुद्र मे शुद्र उसे माना जाता है जो शुद्ध हो अर्थात जिस पुत्र ने अपनी माता के गोत्र व पिता के गोत्र वाली कन्या से विवाह न किया हो साथ वह कन्या माता की पिछली सात पीडियो से रक्त सम्बन्ध न रखती हो या खून का रिश्ता न हो वह शुद्र शुद्ध है ।
वर्ण संकर न हो :- जिस शुद्र के पिता ने शुद्र की कन्या से ही विवाह किया हो यदि अन्य वर्ण या जाती मे विवाह किया है तो वह वर्ण संकर कहलायेगा । साथ ही यदि मलेच्छ्य ( मुसलमान व ईसाई ) , मूलनिवासी व अन्य जाती मे विवाह किया है तो सन्तान माता की जाती की होगी और यदि अपने से उच्च वर्ण मे विवाह किया है तो यह सन्तान वर्ण विलोम होगी और एसी सन्तान को अपनी ही जैसी ही वर्ण-विलोम सन्तान से विवाह करना चाहिये । ( वर्ण संकर जातियो के दो भेद हैं )
(अ)वर्ण अनुलोम क्रम :- पुरुष द्वारा अपने वर्ण से नीचे के वर्ण मे विवाह करने से जन्म लेने वाली सन्तान वर्ण अनुलोम संतान कहलाती है ।
(ब) वर्ण विलोम क्रम :- कन्या द्वारा पाने वर्ण से नीचे के वर्ण मे विवाह करने से जन्म लेने वाली सन्तान वर्ण विलोम संतान कहलाती है ।
यही नियम सभी जातियो और वर्णो पर लागू होता है साथ ही शास्त्रो मे बताये गये तन मन की शुद्धता संबन्धी अन्य नियमो का भी पालन करना अनिवार्य होगा अन्यथा क्षम्य दोष के लिये कठोर प्रयश्चित ( कठिन उपवास ) करना होगा व अक्षम्य दोष के लिये पुर्व के वर्ण या जाती को ही स्वीकारना होगा । निश्चय ही यह कठोर नियम हैं परन्तु एसा नही है कि एसा कभी हुआ ही नही है ? कलियुग के प्रारम्भ मे ही इस भारत मे सभी ब्राह्मण हो गये थे । विकास करते हुये शुद्रता से उपर उठते हुये ब्राह्मणत्व को पाना बहुत ही कठिन और लम्बा अनुवान्शिक विकास है परन्तु ब्राह्मणत्व से नीचे गिरकर शुद्रता या उससे भी नीचे मलेच्छ्यता ( मुसल्मान व ईसाई ) को पाना बहुत ही सरल है । आज ब्राह्मण भी धीरे-धीरे शूद्रता को पा रहे है बहुत मिलावट हो गई है ब्राह्मणो मे ,जल्द ही इस दोष को समाप्त करना होगा और नये ब्राह्मणो का विकास करना होगा ।
बोलो ब्राह्मण स्वरूप भगवान श्री गणेशजी की जय
आओ ब्राह्मण बने । हम ब्राह्मण सभी वर्णो व मलेच्छ्यो ( मुसल्मान और ईसाई ) , मूलनिवासी आदि जातियो का आवाहन करते है कि वे उपर उठे और ब्राह्मण बने । परन्तु इससे पहले यह जानले कि आप ब्राह्मण कैसे बन सकते है । एसा नही है, कि आपने माना कि आप ब्राह्मण है ? और ब्राह्मण बन गये । ब्राह्मन सिर्फ़ कर्म से नही बना जा सकता आपको वन्श से भी ब्राह्मण बनना होगा । ब्राह्मणत्व का बीज आप अपने वन्श मे बोयेगे और आपका वन्श ब्राह्मणत्व को प्राप्त होता जायेगा । ब्राह्मण बनने के लिये आपके वन्श को एक-एक कर चारो वर्णो को अपने कर्मो और वन्श की शुद्धता द्वारा लगातार विकसित होते हुये पाना होगा । ब्राह्मण बनने के लिये क्या जरूरी है ? और किस तरह कोई भी वर्ण मलेच्छ्य ( मुसलमान और ईसाई ) से शुद्र , शुद्र से वेश्य , वेश्य से क्षत्रिय और क्षत्रिय से ब्राह्मण बन सकता है ,यह आपको समझना जरूरी है ?
ब्राह्मण उसे माना जायेगा
(१). जिसकी माँ की ओर से, पिता की ओर से सात पीढि़याँ शुद्ध हों ।
(२). जिसके कुल में सात पीढि़यों में वर्ण संकर न हुआ हो ।
(शुद्ध और वर्ण संकर के विषय मे नीचे देखे )
शुद्ध हो :-ब्राह्मणो मे ब्राह्मण उसे माना जाता है जो शुद्ध हो अर्थात जिस पुत्र ने अपनी माता के गोत्र व पिता के गोत्र वाली कन्या से विवाह न किया हो साथ वह कन्या माता की पिछली सात पीडियो से रक्त सम्बन्ध न रखती हो या खून का रिश्ता न हो वह ब्राह्मण शुद्ध है ।
वर्ण संकर न हो :-वर्ण संकर के दो भेद ( जिस ब्राह्मण के पिता ने ब्राह्मण कन्या से ही विवाह किया हो यदि अन्य वर्ण या जाती मे विवाह किया है तो वह वर्ण संकर कहलायेगा । साथ ही क्षत्रिय वर्ण से नीचे के वर्ण या अन्य मलेच्छय ( मुसलमान या ईसाई ) या आदिवासी जाती मे विवाह किया है तो सन्तान माता की जाती का होगा )
(अ)वर्ण अनुलोम क्रम :- पुरुष द्वारा अपने वर्ण से नीचे के वर्ण मे विवाह करने से जन्म लेने वाली सन्तान वर्ण अनुलोम संतान कहलाती है ।
(ब) वर्ण विलोम क्रम :- कन्या द्वारा अपने वर्ण से नीचे के वर्ण मे विवाह करने से जन्म लेने वाली सन्तान वर्ण विलोम संतान कहलाती है ।
इसी नियम के आधार पर कोई भी मलेच्छय ( मुसलमान व ईसाई ) , मूलनिवासी या कोई भी अन्य जाती उपर उठते हुये किसी भी वर्ण को प्राप्त कर सकती है ।
जो भी वर्ण या जाती उपर उठना चाहती है उस जाती के पुत्र को स्वयं को आधार ( गोत्र प्रवर्तक पुरुष ) मानते हुये कोई भी शुभ सूचक परन्तु सभी से भिन्न नाम रखकर वन्श गोत्र निर्धारित करना होगा ।
एक बार गोत्र निर्धारित हो जाने पर भविष्य मे होने वाली सभी संतानो का यही गोत्र होगा जो पह्चान होगी उनके वंश के आधार पुरुष की । भविष्य मे जब भी विवाह होगा उसके वंशज अपनी जाती मे ही विवाह करेंगे और गोत्रादि नियमो का पालन करेंगे ।
अब यदि कोई मलेच्छ्य ( मुसलमान और ईसाई ) , मूलनिवासी या कोई अन्य जाती ब्राह्मण बनना चाहता है तो पहले उसे शुद्र वर्ण को सफ़लता पुर्वक प्राप्त करना होगा । शुद्र बनने के लिये उपर दिया गया नियम ही लागू होगा । उदाहरण के लिये समझाकर लिखता हुं कोई शुद्र कैसे अपने वर्ण से उपर उठते हुये वेश्य वर्ण मे प्रतिष्ठित हो ।
शुद्र उसे माना जायेगा
(१). जिसकी माँ की ओर से, पिता की ओर से सात पीढि़याँ शुद्ध हों ।
(२). जिसके कुल में सात पीढि़यों में वर्ण संकर न हुआ हो ।
(शुद्ध और वर्ण संकर के विषय मे नीचे देखे )
शुद्ध हो :-शुद्र मे शुद्र उसे माना जाता है जो शुद्ध हो अर्थात जिस पुत्र ने अपनी माता के गोत्र व पिता के गोत्र वाली कन्या से विवाह न किया हो साथ वह कन्या माता की पिछली सात पीडियो से रक्त सम्बन्ध न रखती हो या खून का रिश्ता न हो वह शुद्र शुद्ध है ।
वर्ण संकर न हो :- जिस शुद्र के पिता ने शुद्र की कन्या से ही विवाह किया हो यदि अन्य वर्ण या जाती मे विवाह किया है तो वह वर्ण संकर कहलायेगा । साथ ही यदि मलेच्छ्य ( मुसलमान व ईसाई ) , मूलनिवासी व अन्य जाती मे विवाह किया है तो सन्तान माता की जाती की होगी और यदि अपने से उच्च वर्ण मे विवाह किया है तो यह सन्तान वर्ण विलोम होगी और एसी सन्तान को अपनी ही जैसी ही वर्ण-विलोम सन्तान से विवाह करना चाहिये । ( वर्ण संकर जातियो के दो भेद हैं )
(अ)वर्ण अनुलोम क्रम :- पुरुष द्वारा अपने वर्ण से नीचे के वर्ण मे विवाह करने से जन्म लेने वाली सन्तान वर्ण अनुलोम संतान कहलाती है ।
(ब) वर्ण विलोम क्रम :- कन्या द्वारा पाने वर्ण से नीचे के वर्ण मे विवाह करने से जन्म लेने वाली सन्तान वर्ण विलोम संतान कहलाती है ।
यही नियम सभी जातियो और वर्णो पर लागू होता है साथ ही शास्त्रो मे बताये गये तन मन की शुद्धता संबन्धी अन्य नियमो का भी पालन करना अनिवार्य होगा अन्यथा क्षम्य दोष के लिये कठोर प्रयश्चित ( कठिन उपवास ) करना होगा व अक्षम्य दोष के लिये पुर्व के वर्ण या जाती को ही स्वीकारना होगा । निश्चय ही यह कठोर नियम हैं परन्तु एसा नही है कि एसा कभी हुआ ही नही है ? कलियुग के प्रारम्भ मे ही इस भारत मे सभी ब्राह्मण हो गये थे । विकास करते हुये शुद्रता से उपर उठते हुये ब्राह्मणत्व को पाना बहुत ही कठिन और लम्बा अनुवान्शिक विकास है परन्तु ब्राह्मणत्व से नीचे गिरकर शुद्रता या उससे भी नीचे मलेच्छ्यता ( मुसल्मान व ईसाई ) को पाना बहुत ही सरल है । आज ब्राह्मण भी धीरे-धीरे शूद्रता को पा रहे है बहुत मिलावट हो गई है ब्राह्मणो मे ,जल्द ही इस दोष को समाप्त करना होगा और नये ब्राह्मणो का विकास करना होगा ।
बोलो ब्राह्मण स्वरूप भगवान श्री गणेशजी की जय
भगवत गीता के अनुसार कुल की स्त्रियों के दूषित होने से वर्ण संकर उत्पन्न होते हैं। क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि शास्त्रो में बताये गए ८ प्रकार के विवाहों से उत्पन्न संतान वर्ण संकर नहीं कहलायेगी, विवाह के बाहर उत्पन्न संतान वर्ण संकर कहलायेगी?
जवाब देंहटाएंशायद आप वर्ण संकर की परिभाषा का शास्त्र सम्मत सन्दर्भ दे पाएं पर मैं भगवत गीता के इस श्लोक की बात कर रहा था। http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE_1:41