ॐ श्री महागणेशाय नमः
अभी कुछ दिनो पहले मैने पढ़ा था कि विदेशों मे संस्कृत के महत्व व गुण को जानकर विद्यालयो मे संस्कृत सिखाई जा रही है जिसके प्रभाव से पश्चिमी मलेच्छ्य ( इन्द्रिय सुख की ही इच्छा वाले ) बुद्धीमान बन सकें हा हा हा हा हा हा माफ़ कीजियेगा मुझे बहुत हंसी आ रही है यह सब देखकर मुझे इसलिये हंसी आ रही है क्युंकि भाई इनकी मूर्खता दिखाई दे रही है और सिर्फ़ यह भारतीयो की योग्यता से प्रभावित होकर सिर्फ़ नकल करने का प्रयास कर रहे हैं आप तो सभी जानते है कि नकल के लिये भी अकल होनी जरूरी है एसा मै इसलिये कह रहा हुं कि पशचिमी स्थान एसे हैं हे नहीं कि वंहा संस्कृत का कोई भी शब्द बोला जाय यदि एसा किया गया तो इसका भयानक परिणाम आयु की कमी व रोगी शरीर के रूप मे भोगना होगा इस बात को समझने के लिये आपको संस्कृत के विषय मे एक बहुत जरूरी बात समझनी होगी वो यह है कि संस्कृत सिर्फ़ एक भाषा न होकर एक पुरा का पूरा योग शास्त्र है जिसे बिना जाने भी सिद्ध किया जा सकता है परन्तु नियमो का पालन जरूरी है अब जानिये संस्कृत की कुछ गहरी बातें
संस्कृत* के उच्चारण से होते है प्राणायाण- संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभ दायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —
यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। और नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—
यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि। अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं। उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा। कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है । परन्तु यदि संस्कृत से प्राणायाम सिद्ध होता है तब तो संस्कृत का प्रयोग करते समय प्राणायाम से संबंधित नियमो का भी पालन करना जरूरी हो जाता है जिसका कुछ नियम हैं-
(अ). शान्त स्थान का होना
(ब). धूल रहित स्थान होना
(स). गन्दगी रहित होना
(द). बदबू न होना
(ई). हवा मे नमी न होना
(फ़) हवा मे गर्मी न होना
(ग) सुनसाम स्थान न होना आदि इस तरह अनेक नियम है जिनका प्राणायाम के समय पालन करना जरूरी है इसके विपरीत प्राणायाम व संस्कृत दोनो का प्रयोग या अभ्यास करने पर आयू क्षीण होने के साथ-साथ शरीर रोगी भी हो जाता है
अब आप खुद समझ जाइये कि जिन पश्चिमी देशो मे हवा मे नमी अधिक होती है साथ ही एक साथ बन्द कमरो मे कई-कई विद्यार्थी एक साथ पढा करते हैं जिनके द्वारा छोड़ी गई कार्बण गैस संस्कृत का उच्चारण करने से होने वाले प्रणायाम व बन्ध आदि लगने के कारण इन बेचारे विद्यार्थियों की आयु क्षीण तो होगी ही साथ ही यह रोगी भी हो जायेंगे इन नकल करने वालों को शायद यह नही पता कि संस्कृत इनके देशो मे पढ़ने-बोलने के लिये नही बनी है और यदि अनाधिकृत रूप से इसका प्रयोग किया जायेगा तो इसका दुष्परिणाम भी भोगना होगा यह मूर्ख शायद नही जानते कि संस्कृत सिर्फ़ भारत मे प्रयोग होने के लिये ही विकसित हुई है वैसे आप क्या कहते हैं इस विषय मे
अभी कुछ दिनो पहले मैने पढ़ा था कि विदेशों मे संस्कृत के महत्व व गुण को जानकर विद्यालयो मे संस्कृत सिखाई जा रही है जिसके प्रभाव से पश्चिमी मलेच्छ्य ( इन्द्रिय सुख की ही इच्छा वाले ) बुद्धीमान बन सकें हा हा हा हा हा हा माफ़ कीजियेगा मुझे बहुत हंसी आ रही है यह सब देखकर मुझे इसलिये हंसी आ रही है क्युंकि भाई इनकी मूर्खता दिखाई दे रही है और सिर्फ़ यह भारतीयो की योग्यता से प्रभावित होकर सिर्फ़ नकल करने का प्रयास कर रहे हैं आप तो सभी जानते है कि नकल के लिये भी अकल होनी जरूरी है एसा मै इसलिये कह रहा हुं कि पशचिमी स्थान एसे हैं हे नहीं कि वंहा संस्कृत का कोई भी शब्द बोला जाय यदि एसा किया गया तो इसका भयानक परिणाम आयु की कमी व रोगी शरीर के रूप मे भोगना होगा इस बात को समझने के लिये आपको संस्कृत के विषय मे एक बहुत जरूरी बात समझनी होगी वो यह है कि संस्कृत सिर्फ़ एक भाषा न होकर एक पुरा का पूरा योग शास्त्र है जिसे बिना जाने भी सिद्ध किया जा सकता है परन्तु नियमो का पालन जरूरी है अब जानिये संस्कृत की कुछ गहरी बातें
संस्कृत* के उच्चारण से होते है प्राणायाण- संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभ दायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —
यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। और नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—
यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि। अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं। उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा। कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है । परन्तु यदि संस्कृत से प्राणायाम सिद्ध होता है तब तो संस्कृत का प्रयोग करते समय प्राणायाम से संबंधित नियमो का भी पालन करना जरूरी हो जाता है जिसका कुछ नियम हैं-
(अ). शान्त स्थान का होना
(ब). धूल रहित स्थान होना
(स). गन्दगी रहित होना
(द). बदबू न होना
(ई). हवा मे नमी न होना
(फ़) हवा मे गर्मी न होना
(ग) सुनसाम स्थान न होना आदि इस तरह अनेक नियम है जिनका प्राणायाम के समय पालन करना जरूरी है इसके विपरीत प्राणायाम व संस्कृत दोनो का प्रयोग या अभ्यास करने पर आयू क्षीण होने के साथ-साथ शरीर रोगी भी हो जाता है
अब आप खुद समझ जाइये कि जिन पश्चिमी देशो मे हवा मे नमी अधिक होती है साथ ही एक साथ बन्द कमरो मे कई-कई विद्यार्थी एक साथ पढा करते हैं जिनके द्वारा छोड़ी गई कार्बण गैस संस्कृत का उच्चारण करने से होने वाले प्रणायाम व बन्ध आदि लगने के कारण इन बेचारे विद्यार्थियों की आयु क्षीण तो होगी ही साथ ही यह रोगी भी हो जायेंगे इन नकल करने वालों को शायद यह नही पता कि संस्कृत इनके देशो मे पढ़ने-बोलने के लिये नही बनी है और यदि अनाधिकृत रूप से इसका प्रयोग किया जायेगा तो इसका दुष्परिणाम भी भोगना होगा यह मूर्ख शायद नही जानते कि संस्कृत सिर्फ़ भारत मे प्रयोग होने के लिये ही विकसित हुई है वैसे आप क्या कहते हैं इस विषय मे
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