मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

ज्योति्ष मे वर्ण-जाती ,योनी , खान-पान, रहन-सहन व व्याव्हार आदि के आधार पर ग्रहो के प्रभाव की भिन्न्ता

                          महान गणितज्ञ भगवान श्री गणेशजी को शत-शत नमन

कुंडली विज्ञान ग्रह-नक्षत्रो के गुरुत्वाकर्षण बल के आधार पर विकसित किया गया विज्ञान है । जिसमे ग्रहो की दिशा व नक्षत्रो-राशियो मे होने के कारण हुए , हो रहे व होने वाले प्रभावो को दर्षाता है । परन्तु लगभग सभी ज्योतिषी कुंडली का अध्ययन करते समय इस बात का ध्यान नही रखा करते कि वे किस तरह के आनुवान्शिक गुणो वाले व्यक्ति की कुंडली का अध्ययन कर रहे है । ग्रहो-नक्षत्रो का प्रभाव वर्ण व जाती व वंश आदि के अनुसार अययन किया जाना चाहिये । क्युन्कि यह सभी प्रभाव चुम्बकीय प्रभाव होते है । और यह चुम्बकीय प्रभाव चुम्बक की  गुण्वत्ता ( क्वालिटी  ) और आसपास की परिस्तिथियो पर भी निर्भर करता है । आज अनगिनत ज्योतिषी कुकुर्मुत्तो के समान उग आये है जो न किसी बारीकी पर ध्यान देते है न ही अन्य किसी बात पर ? आप ज्योतिष मे हिन्दु , मुसलमान , सिख और ईसाई व अन्य जातियो को एक ही तराजू मे तोलकर उनकी कुंडलियो का अध्ययन समान रूप से नही कर सकते ? क्युन्कि सबका , खान-पान, रहन सहन , व्यावहार आदि सभी कर्म भिन्न-भिन्न होते है और इन्ही भिन्न-भिन्न कर्मो के कारण भिन्न-भिन्न जातियो का विकास होता ।

ग्रहो का प्रभाव ( ग्रहो के प्रभाव के लिये इस लिन्क को देखें  www. facebook.com/notes/विनेक-दुबे/चंद्रमाराहू-केतू-का-ज्योतिष-मे-वेज्ञानिक-आधार-पर-प्रभाव/125530690833482 )तो मनुष्य क्य सभी जीवो यंहा तक की वनस्पतियो आदि सभी जड़-चेतन पर पढता है । तो इसका यह अर्थ तो नही हो जाता कि सभी का भविष्य भी एक समान होगा । यदि कोई इस अतरह ज्योतिष शास्त्र का प्रयोग करता है तो वह सभी को मुर्ख ही बनायेगा और ज्योतिष शास्त्र को कलंकित करेगा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें