मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

लिंग पुजा नही अश्लील

                                   ॐ श्री महागणेशाय नमः


                              हिन्दुओ मे सभी देवताओ की लिंग पुजा की जाती है जिसे कई हिंदु विरोधी अश्लील होना बताते है  और इस कारण हमारे कई धर्मपालक ( हिन्दु भाई ) भ्रमित हो जाते हैं और उन्हे भी यह बात समझ नही आती है । परन्तु इसमे भ्रमित होने वाली कोई भी बात नही है न ही शर्मिंदा होने की कोई बात है क्युं कि हिन्दुओ मे जो कोई भी शब्द है वह किसी व्यक्ति या वस्तु विषेश के लिये नही है यह सभी शब्द या नाम उपनाम आदि सभी गुणो के अनुसार निर्धारित किये गये है और यह सभी नाम गुणो की प्रधानता को दर्शाते हैं इसी तरह लिंग और योनि भी हैं इसे नीचे  समझे

लिंग- लिंग उस अन्ग को कहा जाता है जो देवता या जीव आदि के विषिष्ठ गुण ( बीज रूप ) को श्रेष्ठ सृजन के उद्देश्य की पूर्ती के लिये  प्रवाहित या विस्तारित कर सके या बीज * को प्रतिष्ठित कर सके अतः जो अन्ग शुभ उद्देशय (श्रेष्ठ नव स्रुजन ) की पूर्ती के लिये संबन्धित कार्य करता हो लिंग कहा जा सकता है यंह जिस अन्ग को लिंग कहा जाता है यदि उसी अन्ग को यदि इन उद्देश्यो की पूर्ती न करते हुये सिर्फ़ शारिरिक सुख या विकृत सृजन का प्रयास चाहे-अनचाहे यद किया जाता है तो वे अन्ग लिंग नही कहे जा सकते

योनी-योनी वह अन्ग है जो श्रेष्ठ नव सृजन के उद्देशय की पूर्ती के लिये प्रवाहित किये गये बीज को ग्रहण करते हुये प्रतिष्ठित करने मे सहायक योग्दान देती है इसी तरह यदि इस अन्ग से इन उद्देश्यो की पूर्ती न करते हुये सिर्फ़ शारिरिक सुख के लिये या जाने-अनजाने या चाहे-अनचाहे विकृत स्रुजन किया जाता है तब इस अन्ग को भी योनी नही कहा जा सकता

शिवलिंग को ही अश्लील क्युं बताना-सभी देवताओ की लिंग पुजा के लिये शास्त्र धर्मपालको (हिंदुओ) को निर्देशित करते हैं परन्तु सिर्फ़ एकमात्र शिवलिंग को ही अश्लील बताते हुये अश्लील भाषा मे मलेच्छ्यो द्वारा प्रचारित कर धर्मपालक ( हिंदुओ ) को भ्रमित करने का प्रयास किया जाता है । इसका पहला कारण तो यह है धर्मपालको द्वारा सबसे अधिक शिवलिंग का ही पुजन किया जाता है दुसरा शिवलिंग स्तम्भ रूप मे होता है एसा अधिकांशतः हिन्दु विरोधियो द्वारा प्रचारित किया जाता है जिसमे बौद्ध,आर्य समाजी ,मुसलमान ईसाई आदि शामिल हैं । वास्तव मे शिवलिंग का स्तम्भ रूप सभी मे गुणो के क्रमिक विकास का स्तम्भ रूप है ।

अब सवाल उठता है कि हिन्दु ( धर्मपालक ) विरोधीयो के द्वारा इन गुणो को धारण करने वाले अंगो की पूजा को अश्लील क्युं कहा जाता है तो इसका कारण यह है कि धर्मपालको ( हिन्दुओ )के अतिरिक्त इस धरती पर एसी कोई मनुष्य जाती नही है जो श्रेष्ठ सृजन के उद्देशय के लिये प्रयास करते हो यह हिन्दु विरोधी सभी मनुष्य इन अन्गो द्वारा काम-वासना या शरीर सुख के एक मात्र उद्देशय की पूर्ती के लिये ही प्रयास रत रहते है और उन्हे तो कभी इस बात का ज्ञान होता ही नही कि एसा भी कोई नियम , उपाय या प्रयास है जिसके द्वारा श्रेष्ठ संतान को जन्म दिया जा सकता है वास्तव मे कहा जाय तो एसे मलेच्छ्यो ( सिर्फ़ शारिरिक सुख की इच्छा के लिये प्रयास करने वाले ) के लिंग व योनी जैसे कोई अन्ग होते ही नही हैं एक तरह से कहा जाय तो यह लिंग व योनी जैसे श्रेष्ठ अन्गो की बजाय उन अन्गो को धारण करते है जिन्हे गालियो के रूप मे प्रयोग किया जाता है गालिया और कुछ नही यह व्यक्ति विषेश के अवगुणो को दर्शाने वाले शब्द होते हैं

तो इन सभी बातो से यही सब प्रमाणित होता है कि निःसंकोच होकर लिंग पुजा की जा सकती है क्युंकि हम उन अन्गो की पुजा करते हैं जो श्रेष्ठ नव स्रुजन मे सहायक है और जो भी लिंगपूजा को अश्लील बताते हैं उन्हे मुर्ख या नादान समझ कर माफ़ कर देना चाहिये या एसा समझना चाहिये कि वे धर्मपालको ( हिंदुओ ) की श्रेष्ठता व श्रेष्ठता के प्रयासो के कारण द्वेष नाम की बीमारी से पीड़ित होने के कारण एसा करते हैं

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