गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

महर्षिवेद-व्यास उनके पुत्र सुकदेव , वाल्मीकी , चन्द्रगुप्त मोर्य कौन थे पहला शूद्र राजा नन्द कैसे बना ?

                                                          ॐ श्री महा गणेशाय नमः 


कुछ अज्ञानी कहते हैं की महर्षिवेद-व्यास उनके पुत्र सुकदेव , वाल्मीकी , चन्द्रगुप्त मोर्य आदि सभी शूद्र वर्ण के थे और पहले शूद्र राजा नन्दवंश की तारीफ करते नही थकते इसलिए उन्हे वास्तविकता दिखाना जरूरी हो जाता है हम चाहते हैं वो श्रेष्ठ हों परंतु उन्होने एसा कुछ भी नही किया है   जिससे उनी  तारीफ की जा सके

वर्णव्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण से क्षत्रिय माता की संतान ही ब्राह्मण कहलाती है इसके अलावा ब्राह्मण  द्वारा किसी भी वर्ण या जाती मे विवाह से जन्मी संतान की जाती वही होती  है जो माता की होती है रवां के पिता ब्राह्मण थे और उनकी माता राक्षसी अतः रावण भी राक्षस ही हुआ परंतु ब्राह्मण की संतान था इसलिए भगवान श्री रामजी को अशव्मेघ यज्ञ द्वारा प्रायश्चित करना पड़ा

वाल्मीकी - 
हिंदुओं के प्रसिद्ध महाकाव्य वाल्मीकि रामायण, जिसे कि आदि रामायण भी कहा जाता है और जिसमें भगवान श्रीरामचन्द्र के निर्मल एवं कल्याणकारी चरित्र का वर्णन है, के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के विषय में अनेक प्रकार की भ्रांतियाँ प्रचलित है जिसके अनुसार उन्हें निम्नवर्ग का बताया जाता है जबकि वास्तविकता इसके विरुद्ध है। ऐसा प्रतीत होता है कि हिंदुओं के द्वारा हिंदू संस्कृति को भुला दिये जाने के कारण ही इस प्रकार की भ्रांतियाँ फैली हैं। वाल्मीकि रामायण में स्वयं वाल्मीकि ने श्लोक संख्या ७/९३/१६, ७/९६/१८, और ७/१११/११ में लिखा है कि वे प्रचेता के पुत्र हैं। मनुस्मृति में प्रचेता को वशिष्ठ, नारद, पुलस्त्य आदि का भाई बताया गया है। बताया जाता है कि प्रचेता का एक नाम वरुण भी है और वरुण ब्रह्माजी के पुत्र थे। यह भी माना जाता है कि वाल्मीकि वरुण अर्थात् प्रचेता के 10वें पुत्र थे और उन दिनों के प्रचलन के अनुसार उनके भी दो नाम 'अग्निशर्मा' एवं 'रत्नाकर' थे।बाल्यावस्था में ही रत्नाकर को एक निःसंतान भीलनी ने चुरा लिया और प्रेमपूर्वक उनका पालन-पोषण किया। जिस वन प्रदेश में उस भीलनी का निवास था वहाँ का भील समुदाय असभ्य था और वन्य प्राणियों का आखेट एवं दस्युकर्म ही उनके लिये जीवन यापन का मुख्य साधन था। हत्या जैसा जघन्य अपराध उनके लिये सामान्य बात थी। उन्हीं क्रूर भीलों की संगति में रत्नाकर पले, बढ़े, और दस्युकर्म में लिप्त हो गये।युवा हो जाने पर रत्नाकर का विवाह उसी समुदाय की एक भीलनी से कर दिया गया और गृहस्थ जीवन में प्रवेश के बाद वे अनेक संतानों के पिता बन गये। परिवार में वृद्धि के कारण अधिक धनोपार्जन करने के लिये वे और भी अधिक पापकर्म करने लगे।

महर्षि वेदव्यास -
सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपनी शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी को एक दूसरी शिकारी पक्षी मिल गया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुये वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। गर्भ पूर्ण होने पर एक निषाद ने उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली को चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया जिसका नाम मत्स्यराज हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम मत्स्यगंधा रखा गया क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को सत्यवती के नाम से भी जाना जाता है। बड़ी होने पर वह नाव खेने का कार्य करने लगी एक बार पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करना पड़ा। पाराशर मुनि सत्यवती रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले, "देवि! मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूँ।" सत्यवती ने कहा, "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पाराशर मुनि बोले, "बालिके! तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुये कहा, तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।"समय आने पर सत्यवती गर्भ से वेद वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला, "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे कृष्ण द्वैपायन कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुये।

सुकदेवजी -
वेदव्यासजी के पुत्र थे

मोर्य वंश -
325 ईसापूर्व में उत्तर पश्चिमी भारत (आज के पाकिस्तान का लगभग सम्पूर्ण इलाका) सिकन्दर के क्षत्रपों का शासन था । जब सिकन्दर पंजाब पर चढ़ाई कर रहा था तो एक ब्राह्मण जिसका नाम चाणक्य था (कौटिल्य नाम से भी जाना गया तथा वास्तविक नाम विष्णुगुप्त) मगध को साम्राज्य विस्तार के लिए प्रोत्साहित करने आया । उस समय मगध अच्छा खासा शक्तिशाली था तथा उसके पड़ोसी राज्यों की आंखों का काँटा । पर तत्कालीन मगध के सम्राट धन नन्द ने उसको ठुकरा दिया ।मौर्य प्राचीन क्षत्रिय कबीले के हिस्से रहे है। प्राचीन भारत छोटे -छोटे गणों में विभक्त था । उस वक्त कुछ ही प्रमुख शासक जातिया थी जिसमे शाक्य , मौर्य का प्रभाव ज्यादा था ।चन्द्रगुप्त उसी गण प्रमुख का पुत्र था जो की चन्द्रगुप्त के बाल अवस्था में ही यौद्धा के रूप में मारा गया । चन्द्रगुप्त में राजा बनने के स्वाभाविक गुण थे 'इसी योग्यता को देखते हुए चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया ,एवं एक सबल रास्ट्र की नीव डाली जो की आज तक एक आदर्श है ।

ननदवंश-
इतिहास की जानकारी के अनेक छिटफुट विवरण पुराणों, जैन और बौद्ध ग्रंथों एवं कुछ यूनानी इतिहासकारों के वर्णन में प्राप्त होते हैं। किंतु उन सब में न कोई पूर्णता है और न ऐकमत्य ही। तथापि इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि नंदों का एक राजवंश था जिसकी अधिकांश प्रकृतियाँ भारतीय शासनपरंपरा के विपरीत थीं। कर्टियस कहता है कि सिकंदर के समय वर्तमान नंद राजा का पिता वास्तव में अपनी निज की कमाई से अपनी क्षुधा न शांत कर सकनेवाला एक नाई था, जिसने अपने रूपसौंदर्य से शासन करनेवाले राजा की रानी का प्रेम प्राप्त कर राजा की भी निकटता पा ली। फिर विश्वासपूर्ण ढंग से उसने राजा का वध कर डाला, उसके बच्चों की देख-रेख के बहाने राज्य के हड़प लिया, फिर उन राजकुमारों को मार डाला तथा वर्तमान राजा को पैदा किया। यूनानी लेखकों के वर्णनों से ज्ञात होता है कि वह "वर्तमान राजा" अग्रमस् अथवा जंड्रमस् (चंद्रमस ?) था, जिसकी पहचान धननंद से की गई है। उसका पिता महापद्मनंद था, जो कर्टियस के उपयुक्त कथन से नाई जाति का ठहरता है। किंतु कुछ पुराणग्रंथ महापद्मनंद को शैशुनाग वंश के अंतिम राजा महानंदिन का एक नाइन के गर्भ से उत्पन्न पुत्र बताते हैं। जैनग्रंथ "परिशिष्ट पर्वन् में भी उसे वेश्या अथवा नापित का पुत्र कहा गया है। इन अनेक संदर्भों से केवल एक बात स्पष्ट होती है कि नंदवंश के राजा नाई जाति के शूद्र थे।"

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