ॐ श्री महागणेशय नमः
ज्योतिष मे चंद्रमा का मन पर सबसे अधिक प्रभाव बताया गया है । आधुनिक विज्ञान कहता है कि चंद्रमा के कारण समुद्र मे ज्वार भाता आता है । समुद्र विशाल है इसलिए चंद्रमा का प्रभाव साफ समझ आता है पर दूसरी जगह समझ नही आ पाता जैसे नदी ,पेड़ और जीव परंतु इस आधार पर यह तो बात समझ आ जाती है कि चंद्रमा जल तत्व पर अपना प्रभाव दिखाता है । और यह जल कहा नही है । लगभग सभी जगह तो है । और जब चंद्रमा जल पर अपना प्रभाव दिखाता है तो मनुष्य मे अपना प्रभाव दिखाएगा यह तो तय है। क्योंकी मनुष्य के शरीर मे लगभग 75% जल तत्व है । और इसका प्रभाव शरीर के किसी भी अंग मे हो सकता है । और इसका प्रभाव नमक के प्रतिशत पर भी तय होता है । क्योंकि समुद्र मे नमक की मात्रा भी बहुत अधिक होती है । तो यदि हमारे शरीर मे नमक की मात्रा अधिक है तो यह प्रभाव भी अधिक होगा । जिसके कारण रक्तचाप (ब्लडप्रेशर ) की शिकायत हो सकती है । अक्सर आपने देखा होगा कि नजर उतरते समय भी नमक का प्रयोग किया जाता है । कई व्यक्ति अपने पैसे की जगह पर भी नमक की एक पोटली रखते हैं । इसी तरह सभी 9 गृह अपना प्रभाव जीवो के अलग-अलग तत्व पर दिखा सकते हैं ।पागलो के मानसिक दहसा मे उतार चड़ाव मे चंद्रमा की कलाओ का बहुत प्रभाव रहता है । अक्सर मानसिक रोगी अमावस्या और पूर्णिमा को बहुत बहकते हैं । अमावस पूर्णिमा को कहा जाता है भूतो या बुरी आत्माओ (विक्रत मानसिक तरंगो) का प्रभाव भी होता है । इसका भी यह अर्थ है की कुछ हमारे आसपास या किसी स्थान विशेष मे एसा होता है जो इस समय मानसिक रूप से या चंद्रमा से बुरे प्रभाव से प्रभावित व्यक्तियों को प्रभावित कर सकता है । जिसे भूत लग जाना कहा जाता होगा । राहू-केतू भी दो गृह चंद्रमा के कारण ही है । चंद्रमा के दोनों ध्रुव प्रथवी के पथ को बार-बार काटते हैं । जिसके कारण राहू और केतू बनते हैं । चंद्रमा के दो ध्रुवो मे से एक ध्रुव सदा प्रथवी की तरफ ही रहता है । हमारी प्रथवी भी एक चुंबक है और चंद्रमा भी एक चुंबक है । जब एक चुंबक पर दूसरे चुंबक का कोई एक ध्रुव पास आता जाता या घूमता है तो दूसरे चुंबक की चुम्बकीय शक्ती पर भी प्रभाव पड़ता है । चंद्रमा लगभग 2.5 दिन मे एक राशी मे रहता है इस तरह लगभग 27.5 दिन मे एक चक्र प्रथवी का पूरा करता है । इस बात से आप समझ जाएंगे नक्षत्रो मे बाटा जाना और भी सूक्ष्म विभाजन है ।राशियों का चक्र सिर्फ प्रथवी के चारो और है ।जो स्थिर है । परंतु प्रथवी के लगातार घूमते रहने के कारण राशियों का प्रथवी की गति के अनुसार उदय और अस्त होता रहता है मेरे अनुसार जन्म के समय एक साँचा बना रहता है जिसमे जन्म लेते ही कोई भी उसमे ढल जाता है और उसी के अनुसार प्रत्येक तत्व का प्रतिशत उसके शरीर मे तय हो जाता है । फिर गोचर (वर्तमान मे ) मे ग्रहो की दशा के अनुसार वो प्रभावित होते रहते है । मेरे अनुसार यह भी एक विज्ञान है । जिसको आज का आधुनिक विज्ञान और कुछ व्यक्ति नही मानते हैं । पारा आने वाले समय मे उनको इस बात को स्वीकारना होगा । यदि वो यंहा से शुरू करते हैं तो उनके ही लिए अच्छा है नही तो इस ज्ञान को पाने मे कई सदियाँ बीत जाएंगी ।
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