किसी भी मनुष्य का दाहिना अंग पुरुष प्रधान और बाया अंग स्त्री प्रधान है ।स्त्रियॉं मे स्त्री के बाए अंग ही शरीर पर सर्वाधिक प्रभाव दिखाते और पुरुषो मे दाए अंग हैं, यही दिखाया गया है भगवान शंकरजी के अर्धनारीश्वर रूप मे और यही कारण होता है ,यही कारण होता की ज्ञानी पंडित स्त्रियो के बाए हाथ की कलाई और पुरुषो की दायी कलाई मे किसी भी यज्ञ या अनुष्ठान का अभिमंत्रित धागा बांधते हैं । कई इसको गलत मानते हैं और कहते हैं की-क्यों भाई क्यों बांधे बाए हाथ मे वो तो अशुद्द है ? परंतु वो असली बात को जानते ही नही ,न ही समझने की कोशिश करते हैं ( मुझे उनके द्वारा अपने पूर्वजो के अनुभव ज्ञान पर आधारित स्मृतीयो की उपेक्षा करने का बहुत दुख होता है ) ।
धर्म ( हिन्दू ) कई युगो पुराना है धर्म पालकों ( हिन्दुओ ) को छोड़कर दुनिया के सभी उपधर्म संप्रदाय या जातियाँ क्रम विकास से जन्मती है और नष्ट हो जाती हैं परंतु धर्म पालक( हिन्दु ) कभी नही समाप्त होते , हिन्दुओ के धार्मिक ग्रंथो मे कल्पो का विवरण दिया हुआ है । हिन्दू धर्म के अनुसार चारों युगों का 1 चक्र 1000 बार पूरा होना एक कल्प होता है । हिन्दू धर्म मे चार युगो की गढ़ना की गई है सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलियुग जो लगभग १२०००००० वर्ष या एक कल्प कहलाता है यह है हमारे ज्ञान-विज्ञान की प्राचीनता ।
गुरुवार, 18 नवंबर 2010
भगवान श्री शंकरजी का अर्धनारीश्वर रूप
ॐ शक्ति सहिताय श्री महागणेशाय नमः
किसी भी मनुष्य का दाहिना अंग पुरुष प्रधान और बाया अंग स्त्री प्रधान है ।स्त्रियॉं मे स्त्री के बाए अंग ही शरीर पर सर्वाधिक प्रभाव दिखाते और पुरुषो मे दाए अंग हैं, यही दिखाया गया है भगवान शंकरजी के अर्धनारीश्वर रूप मे और यही कारण होता है ,यही कारण होता की ज्ञानी पंडित स्त्रियो के बाए हाथ की कलाई और पुरुषो की दायी कलाई मे किसी भी यज्ञ या अनुष्ठान का अभिमंत्रित धागा बांधते हैं । कई इसको गलत मानते हैं और कहते हैं की-क्यों भाई क्यों बांधे बाए हाथ मे वो तो अशुद्द है ? परंतु वो असली बात को जानते ही नही ,न ही समझने की कोशिश करते हैं ( मुझे उनके द्वारा अपने पूर्वजो के अनुभव ज्ञान पर आधारित स्मृतीयो की उपेक्षा करने का बहुत दुख होता है ) ।
किसी भी मनुष्य का दाहिना अंग पुरुष प्रधान और बाया अंग स्त्री प्रधान है ।स्त्रियॉं मे स्त्री के बाए अंग ही शरीर पर सर्वाधिक प्रभाव दिखाते और पुरुषो मे दाए अंग हैं, यही दिखाया गया है भगवान शंकरजी के अर्धनारीश्वर रूप मे और यही कारण होता है ,यही कारण होता की ज्ञानी पंडित स्त्रियो के बाए हाथ की कलाई और पुरुषो की दायी कलाई मे किसी भी यज्ञ या अनुष्ठान का अभिमंत्रित धागा बांधते हैं । कई इसको गलत मानते हैं और कहते हैं की-क्यों भाई क्यों बांधे बाए हाथ मे वो तो अशुद्द है ? परंतु वो असली बात को जानते ही नही ,न ही समझने की कोशिश करते हैं ( मुझे उनके द्वारा अपने पूर्वजो के अनुभव ज्ञान पर आधारित स्मृतीयो की उपेक्षा करने का बहुत दुख होता है ) ।
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