गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

हिंदुओं मे गुडी पड़वा को ब्रह्माजी द्वारा श्रष्टी की रचना का वास्तविक अर्थ क्या है ?

                                                 ॐ श्री महा गणेशाय नमः

हिंदुओं मे कहा जाता है की गुडी पड़वा को ब्रह्माजी ने श्रष्टी की रचना की है । इसका अर्थ अनगिनत लोगों मे कोई एक व्यक्ति होगा जो जानता होगा । वास्तव मे इस समय तक मनुष्य जड़ से चेतन और निर्जीव से जीव के रूप मे विकसित होने के बाद अनेक जीवों के क्रमिक आनुवंशिक गुणो के विकास और अनुभवों के आधार पर एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी द्वारा लगातार ग्रहण करते रहें के कारण वानर से आदिवासी और इसके बाद श्रेष्ठ और सभी श्रेष्ठ गुणो को धरण किए हुये मनुष्य ( हिंदु या आर्य ) के रूप मे विकसित हुआ । इसमे से कई मनुष्यों ने अपना संपूर्ण जीवन वनो मे रहते हुये इस अनंत ब्रह्मांड और अनंत दिव्य चेतन शक्तियों के प्रभाव और कार्य करने के विषय मे जाना तब उन्हे देवताओं को सदा शक्ति सम्पन्न बनाए रखने के लिए श्रेष्ठ अनुवांशिक गुणो को और अपने शरीर की *ऊर्जा को व्यर्थ-व्यय न करने के कारण विकसित हुयी दिव्यता को धारण किए हुये एक एसी मानव ( ब्राह्मण ) जाती की आवश्यकता महसूस हुयी जो अपनी दिव्यता के प्रयोग से देवताओं को *हवि द्वारा सदा शक्ति सम्पन्न बनाए रखे (यदि देवता या दिव्य चेतन शक्तियाँ शक्ति हीन हो जाते हैं तो इस ब्रह्मांड मे महाकाल द्वारा प्रलय लाकर दुबारा श्रष्टी की रचना की जाती है ) । ऋषियों द्वारा इस विषय से संबंधित एकत्रित सभी जानकारीयो को *ब्रह्मविद्या कहा गया इसी ब्रह्मविद्या को वेद के रूप मे प्रतिष्ठित किया गया और जिस दिव्य चेतना द्वारा इसे ग्रहण किया गया उसे भगवान ब्रह्मा । ऋषी ब्रह्म विद्या को जानने वाले और विकसित करने वाले तो थे परंतु वे उसका सिर्फ साधारण प्रयोग ही कर सकते थे । पूर्ण प्रभाव को दिखाने के लिए उन्हे ब्राह्मणो की अवश्यकता महसूस हुयी । जिसके कारण उन्होने श्रेष्ठ ऋषीयों और श्रेष्ठ गुणो को धारण किए हुये मनुष्यों को ब्राह्मण के रूप मे प्रतिष्ठित कर दिया इन्ही ऋषियों के नाम आगे चलकर सभी ब्राह्मणो आदी के *गोत्र  कहलाए । सभी ऋषियों द्वारा ब्राह्मणो को प्रतिष्ठित तो कर दिया अब यदि ब्राह्मण सिर्फ यही कार्य करते रहेगे तो उनके भोजन , उनकी रक्षा और उनके दूसरे कार्य जैसे श्रम आदि कार्य जिससे उनकी ऊर्जा का अनावश्यक व्यय हो सकता था और वे अपना पूर्ण प्रभाव नही दिखा सकते थे  । तब उनकी तथा सभी की रक्षा के लिए क्षत्रियों , उनकी धन और *हवी व दूसरे वर्णो आदी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए वेश्यों तथा  सभी के लिए निर्माण, चिकित्सा जैसे अनेक सेवा कार्यों के लिए शूद्रों को प्रतिष्ठित किया । और हिंदुओं के सभी सभी रीती-रिवाजों और नियमो को निर्धारित किया । तथा श्रेष्ठ ब्राह्मणो को श्रेष्ठ पदों व दिव्य स्थानो पर प्रतिष्ठित किया । वास्तव मे इस तरह हुयी थी श्रष्टी की रचना । अब आप जब भी गुडी पड़वा मनाएँ तो आपको श्रष्टी की रचना का इस तरह ज्ञान होना चाहिए । पूर्वकाल मे जिस गोत्र के ब्राह्मण होते थे उसी गोत्र के क्षत्रीय , वेश्य और शूद्र भी होते थे यह एक समुदाय के रूप मे साथ रहा करते थे और आपस मे ( एक गोत्र ) मे अंतरजाती विवाह करके गुणो से हीन संतान को जन्म नही दिया करते थे ? संकर जाती के जल्दी संक्रमित होने के प्रमाण विज्ञान भी देता है । हिंदुओं के अलावा जो अन्य जातियाँ है वे सभी पूर्व मे हिंदु ही थी बाद मे वे पतित होने के कारण अन्य जाथियो के रूप मी आज दिखाई देती हैं । एक ही *कल्प मे यह जातियाँ पतित होने के कारण विकसित होती और नष्ट होती रहती हैं । सिर्फ आदीवासी ही के एक जाती हैं जो क्रमिक विकास के कारण प्रत्येक युग मे विकसित होती हैं परंतु उनमे से लगभग सभी नहस्त हो जाती हैं । हिंदुओं की श्रष्टी की रचना से पहले हिंदु भी आदिवासियों की तरह ही विकसित हुये थे परंतु उन्होने अपने उस विकास को सदा स्थिर बनाए रखेने के साथ स्वयं मे गुणो का संरक्षण और विकास भी किया और अपने अनुभवो और अर्जित ज्ञान को ग्रंथो मे कहानी आदि के रूप मे आने वाली पीड़ी एके लिए सुरक्षित भी कर दिया ।      


*शरीर की ऊर्जा का व्यर्थ व्यय- जब शरीर अधिक श्रम करता है , जरा भी गंदगी मे विषाणुओ से लड़ता रहता है , क्रोध करता है बेकार चिंतन करता है तो शरीर की ऊर्जा का व्यय को जाता है ।

*हवी- वेदों के अनुसार हवी मे श्रेष्ठ और दिव्यता को धारण किए हुये मनुष्यों ( ब्राह्मणो ) द्वारा धरती पर उपजे अन्न के लगभग 25% अन्न को यज्ञ मे अंगारो पर डाले जाने के कारण अन्न के तत्व इस ब्रह्मांड मे सभी जगह देवताओं को गंध के रूप मे शक्ति प्रदान करते हैं इसीलिए शास्त्रों मे कहा गया है देवता गंध द्वारा प्रदान की हुयी वस्तु ग्रहण करते हैं ।


*गोत्र उस ऋषी का नाम है जिसके गुणो को हमने धारण किया है और उनकी रक्षा करते हुये प्रत्येक पीड़ी द्वारा विकसित करने का हमने संकल्प लिया है । हिंदुओं मे एक गोत्र मे विवाह नही होते , इससे जन्मी संतान मे यह गुण नष्ट हो जाते हैं ।

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