गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

क्या ब्राह्मणो द्वारा सभी के हित मे अपनी शरीर की ऊर्जा का व्यर्थ व्यय होने से बचना गलत है ?

                                                ॐ श्री महा गणेशाय नमः


अन्ना द्वारा दलित के हाथ भोजन ग्रहण करना सही है या गलत है में यह नही जानता हाँ परंतु इतना जरूर जानता हूँ की ब्राह्मण बहुत ही शुद्धता से रहते थे इस विषय मे इतने कठोर नियमो का पालन करते थे जैसे वे बाये हाथ से सिर्फ शरीर के नीचे अंगों को स्पर्श करते थे वो भी शौच के बाद की शुद्दता के सभी कठोर नियमों का पालन करने के बाद , जितनी अधिक शुद्दता से रहा जाएगा मानव शरीर को अपनी अमूल्य ऊर्जा बेकार विषाणुओं को नष्ट करने मे नही खर्च करनी होगी जिससे शरीर मे दिव्यता का समावेश होगा । अनेक जीव जन्तु अपनी शरीर की ऊर्जा का अनव्श्यक व्यय नही करते जिससे वे कठोर वातावरण मे भी रह कर अपने मे अनेक आनुवंशिक गुणो का विकास कर लेते हैं । हम यदि एक ब्राह्मण हैं तो हमे शरीर की ऊर्जा के अनावश्यक व्यय की हानियों को समझना चाहिए । ब्राह्मणो को वेद-पुरानो मे चिकित्सक का अन्न ग्रहण करने  से भी मना किया गया है इसका भी यही कारण है न की किसी को हीन समझना । इस अनंत ब्रह्मांड मे अनेक दिव्य चेतन शक्तियाँ है जिन्हे इसी दिव्यता को धारण किए ब्राह्मणो जो शुभ आनुवंशिक गुणो धरण किए हुये हैं के द्वारा जब हवि की अंगारो पर आहूती दी जाती तब हवि के तत्व मुक्त होकर उन देवताओं या दिव्य चेतन शक्तियों को शक्ति प्रदान करते हैं । इस अनंत ब्रह्मांड मे सभी देवता ( दिव्य चेतन शक्तियाँ ) इसी प्रकार शक्ति सम्पन्न होते हैं जिससे इस धरती पर भी वर्षा , फसलों का उगना , श्रेष्ठ संतानों जन्म होना और योग्य का अपना पूर्ण शुभ प्रभाव दिखाना आदि सभी कार्य होते हैं । इंद्रादी सभी देव इसी तरह शक्ति सम्पन्न होते हैं और अपना कार्य करते हैं । किसी देव स्थल पर भी शुद्दता होनी बहुत जरूरी है तभी वंहा दिव्यता का वास होगा । यदि इसी तरह आप हमजैसे व्यक्ति इस तरह की बाते करते रहेंगे तो हिंदुओं के सभी देवस्थानों की दिव्यता नष्ट हो जाएगी । और भविष्य मे मजबूर होकर शुद्ध और वेदिक ब्राह्मणो को अपना एक व्यक्तिगत स्थान बनाकर अलग रहना होगा । सभी वर्ण संकर और गुणो से हीन ब्राह्मणो को अब अलग करने का समय आ गया है । एसे तो सभी ब्राह्मणो की संतान हैं परंतु गुणो से हीन हो चुके हैं
और अब तो मलेच्यों के पूर्ण प्रभाव मे हैं । पुराणो मे अनेक जगहों पर बताया गया है की कैसे श्रेष्ठ वेदिक ब्राह्मणो ने श्रेष्ठ आनुवंशिक गुणो से हीन हो बीमारियों से लड़ने की शक्ति खोकर नष्ट होने के कारण इस धरती पर बार-बार वर्ण व्यवस्था की स्थापना की है । हम जैसे व्यक्ति यदि स्वयं को ब्राह्मण कह ही नही सकता क्यूंकी यदि हम एक चिकित्सक हैं और  हमारा परिवार विषाणु से लड़ने मे लगातार अपनी शरीर की ऊर्जा नष्ट करता रहता है जिससे आपमे गुणो और दिव्यता का विकास न होकर उल्टा अपने महान पूर्वजों के संचित और विकसित किए अनुवाशिक गुणो को नष्ट करता है सिर्फ इतना ही कारण हमारे ब्राह्मण न होने के लिए काफी है । धर्म ग्रंथो के अनुसार ब्राह्मण यदि बाए हाथ से जल भी पी लेता है तो उसे ब्राह्मण अपनी पंक्ति से बाहर कर देते हैं जो बाद मे क्षत्रीय,वेश्य या शूद्र मे रूप मे भविष्य मे अपने वंश को बढ़ाता है

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