गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

क्या विवेकानद भी ज्ञानी थे और यदि थे तो ब्राह्मण द्रोही क्यूँ थे और क्यूँ वेदों के सही अर्थ न समझ सके ?

                                                     ॐ श्री महा गणेशाय  नमः

एक महामूर्ख ने वेदों के विषय मे विवेकानंद की किताब
द कम्पलीट वर्क आफ स्वामी विवेकानंद . वोल्यूम 3 को शाक्षी रख कर लिखा है जिसके पृष्ट संक्या 174, और ५३६ का वर्णन कर रहा हु जिसमे महान हिन्दू धर्म के स्वामी विकेकानन्दजी ने ऋग्वेद का वर्णन किया है

"उक्षणों ही में पंचदंश साकं पंचंती: विश्तिम् |
उताहंमदिंम् पीव इदुभा कुक्षी प्रणन्ती में विश्व्स्मान्दिन्द्र ||" (उत्तर ऋग्वेद 10-86-14 )

अर्थात :- इन्द्राणी द्वारा प्रेरित यज्ञकर्ता मेरे लिए 15-30बैल काटकर पकाते है , जिन्हें खाकर मै मोटा होता हू |वे मेरी कुक्षियो को सोम (शराब ) से भी भरते है | (ऋग्वेद 10-86-14 )

यहाँ धयान दीजियेगा की बैल को पका कर खाने का वर्णन है बैल नरगए को कहते है न यानि गोमाता के पति या पुत्र को
"मित्र कूवो यक्षसने न् गाव: पृथिव्या |
आपृगामृया शयंते ||" (ऋग्वेद 10-89-14 )

अर्थात :- हे ! इन्द्र जैसे गौ वध के स्थान पर गाये कटी जाती है वैसे ही तुम्हारे इस अस्त्र से मित्र द्वेषी राक्षस कटकर सदैव के लिए सो जांए |(ऋग्वेद 10-89-14 ) यहाँ धयान दे की गोवध की बात कही गयी है
"आद्रीणाते मंदिन इन्द्र तृयान्स्सुन्बंती |
सोमान पिवसित्व मेषा ||"
"पचन्ति ते वषमां अत्सी तेषां |
पृक्षेण यन्मधवन हूय मान : ||" (ऋग्वेद 10-28 -3 )
अर्थात :- हे ! इन्द्र अन्न की कमाना से तूम्हारे लिए जिस समय हवन किया जाता है उस समय यजमान पत्थर के टुकडो पर शीघ्रताशीघ्र सोमरस (शराब ) तैयार करते है उसे तुम पीते हो ,यजमान बैल पकाते है और उसे तुम खाते हो | (ऋग्वेद 10-28-3 )

इसका जवाब मेंने दिया है -


महाज्ञानी महेशजी का लिखा श्लोक अशुद्ध है अनेक गलतियाँ हैं इनहोने लिखा है
"आद्रीणाते मंदिन इन्द्र तृयान्स्सुन्बंती सोमान पिवसित्व मेषा ||"
"पचन्ति ते वषमां अत्सी तेषां पृक्षेण यन्मधवन हूय मान : ||" (ऋग्वेद 10-28 -3 )

जबकि श्लोक यह है -
अद्रिणा ते मन्दिन इन्द्र तुयान्त्सुन्वन्ति सोमान्पिबसि त्वमेषाम ।
पचन्ति ते वृषभाँ अत्सी तेषां पृक्षेण यन्मधवनहूयमान : ।। (ऋग्वेद 10-28 -3 )

एक ही श्लोक मे अनेक गलतियाँ है जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है और इसका अर्थ है - ( ऋषि का कथन ) हे इन्द्र देव ! आपके लिए पाषाण खंडों पर शीघ्रतापूर्वक अभिषवित आनंदप्रद सोम को जब यजमान लोग तैयार करते हैं , एसे मे आप उनके द्वारा प्रदत्त सोमरस का पान करते हैं । हे एश्वर्य सम्पन्न इन्द्र देव ! जिस समय सत्कार-पूर्वक हविष्यन्नों से यज्ञ किया जाता है , उस समय साधक गण वृषभ ( शक्ति सम्पन्न हव्य ) को पकाते ( हविष्यान्न को यज्ञ मे अंगारों पर भूनने की क्रिया ) है और आप उनका सेवन करते हैं

यंहा यह भी नही भूलना चाहिए की एक राशी का नाम भी वृष है वंहा भी कोई 4 पैरों वाला जीव नही है ।हिंदुओं मे सभी देवताओं और उनके वाहनो के नाम गुणो के आधार पर रखे गए हैं ।

संस्कृत शब्दकोश से वृषभ के सभी अर्थ लिख रहा हूँ

वृषभ vRSabha m. ox
वृषभ vRSabha m. bull
वृषभ vRSabha adj. vigorous
वृषभ vRSabha adj. strong
वृषभ vRSabha adj. manly
वृषभ vRSabha adj. mighty
वृषभ vRSabha m. zodiacal sign Taurus
वृषभ vRSabha m. most excellent or eminent
वृषभ vRSabha m. bullock
वृषभ vRSabha m. Mucuna Pruriens
वृषभ vRSabha m. chief edit
वृषभ vRSabha m. of the 28th muhUrta
वृषभ vRSabha m. hollow or orifice of the ear
वृषभ vRSabha m. particular drug
वृषभ vRSabha m. lord or best among

अब सभी को विश्वाश हो जाएगा की में सही कह रहा हूँ या नही
इसके आगे तो विवेकानंद का भी ज्ञान संकुचित दिखता है मेरी माँ कहती थी उन्होने की मेरे गर्भ मे होने के समय  विवेकानद की किताबें पढ़ी तो मुझे लगता है मेरे साथ बहुत बड़ा छल हो गया है इसकी जगह यदि किसी धर्म ग्रंथ और ऋषि मुनि की किताब पढ़ी जाती तो में आज और भी अधिक गुणवान और ज्ञानवान होता है मुझे बहुत दुख है मेरे साथ हुये इस छल का ,में एसे सभी मूर्खों का मुह बंद करके निश्चय ही इस कमी को पूरा करूंगा

ब्राह्मणो की जय हो अब्राह्मणो का नाश हो


ब्राह्मणो की जय हो अब्राह्मणो का नाश हो अर्थात में सभी को उस स्थान पर देखना चाहता हूँ ब्राह्मण का उद्देशया सुधार है न की विनाश यह तो अंतिम रास्ता है जो देवताओं के द्वारा किया जाता है

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