गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

हिन्दू धर्म मे देवताओ के राजा ' इन्द्र ' क्या हैं ?

                                                    ॐ श्री महा गणेशाय नमः

इन्द्र को देवताओ के संगठक देवता के रूप मे मान्यता प्राप्त है । परमाणु मे यदि + और - प्रभारों को बांधकर रखने की क्षमता न हो तो परमाणु उपकणो मे विखंडित हो जाएगा । सूर्य मे यदि ग्रहो को बांधकर रखने की क्षमता न हो तो सौरमण्डल का अस्तित्व कैसे रहेगा ? आत्मा चेतना मे यदि पंचभूतों , पंचकोशों ,पाँच प्राणो को अपने साथ जोड़े रखने की क्षमता न हो तो जीवन कैसे रहेगा ? उस चेतना के प्रस्थान के साथ ही सभी बिखरने लगते हैं ।

ऋषियों ने इन्द्र को इन सभी संदर्भों मे देखा और बखाना है । इन्द्र संगठित रखने मे समर्थ एक दिव्य चेतन सत्ता है , जिसके आधार पर  परमाणु से लेकर गृह नक्षत्रो तक परिवार अनुशाशित ढंग से क्रियाशील है । इसी प्रकार के अनेकानेक श्रेष्ठ गुणो से सम्पन्न होने के कारण वेदो मे इन्द्र को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त है । इनके हजारो गुणो और प्रभावों के वर्णन प्रयास मे सामवेद के ' पूर्वाचिक ' का एक स्वतंत्र कांड ही विनिर्मित हो गया है , जिसका नाम ' एनद्र कांड या ' एनद्र पर्व ' रखा गया है , जिसमे सामवेद के 351 मंत्र संग्रहीत हैं ।


' इन्द्र ' पर भोतिक विज्ञान की दृष्टी से भी पर्याप्त अध्ययन किया गया है । आर्ष दृष्टी ' इन्द्र ' को देवो का राजा या संगठक मानती है , तो वेज्ञानिक दृष्टी उन्हे " इलेक्ट्रॉन , प्रोटोन एव न्यूट्रोन का अन्तः संबंधक या गुप्त संयोजक मानती है । इसे ही ऋषी ने ' त्रित ' कहा है । इन्द्र भी अनंत हैं इंद्र यदि परमणु मे हैं तो वे परमाणु से भी सूक्ष्म अन्य चरणों मे भी हैं इस सूक्ष्मता का अनुमान भी नही लगाया जा सकता इसी तरह यही इन्द्र यदि इस ब्रह्मांड मे हैं तो वे ही इन्द्र कामारी आकाशगंगा मे भी हैं जो आकाशगंगा को संगठित किए हुये हैं यह ब्रह्मांड अनंत है और उसी तरह इन्द्र भी अनंत हैं । वेज्ञानिक दृष्टी का यह विषद विवेचन ' वेदो मे इन्द्र ' नामक पुस्तक मे देखा जा सकता है ।

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