गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

आधुनिक युग के भ्रामक देवता , अवतार ,साधू ,संत और गुरुओं की प्रमाणिकता

                                                       ॐ श्री महा गनेशाय नमः

आज तरह-तरह के संप्रदायों का जन्म हो गया है कोई कहता है शिरडी के सांई भगवान हैं कोई कहता है वो सांई भगवान हैं कोई कहता है बाबा रामदेव अवतारी पुरुष हैं एसे न जाने कितने भगवान गुरु और अवतारों को आज माना जाता है । उनकी चालीसा आरती और मंत्र न जाने क्या-क्या बना दिये गए हैं । हिंदुओं को सिर्फ उन्हे ही अवतार और भगवान
मानना चाहिए जिन्हे वेदिक धर्म ग्रंथो मे प्रमाणित किया गया है । यदि हिंदु आज अपने वेदिक देवताओं और ग्रंथो के आलावा किसी भी भ्रामक प्रचार से प्रभावित हो जाते हैं तो यह उनकी कमजोर आत्मशक्ति, अनुचित लाभ की इच्छा या कोई अज्ञात भय है जो उन्हे इस तरह प्र्भावित कर रहा है अब तो हिंदु इतने कमजोर और अनुचित लाभ की इच्छा रखेने वाले हो गए हैं कि वे देवताओं के साथ-साथ कब्रों को भी पूजने लग गए हैं । क्या उन्हे कब्रों और देवताओं मे कोई अन्तर नही प्रतीत होता

आज के भ्रामक देवता , अवतार और ग्रंथादी एक बात बहुत कहते हैं कि सभी मनुष्यों मे आत्मा का वास है अतः सभी समान हैं । फिर तो पशुओं मे भी आत्मा है पशु और मनुष्य भी समान हो गए । दूसरी बात इस ब्रह्मांड मे एसा कुछ भी नही जिसमे गुणो के आधार पर जातिगत अंतन न हो इसका सीधा अर्थ है जो भी यह कहता है कि सभी एक समान हैं वह झूठा है और आपको भ्रमित कह रहा है चाहे दूसरे उसे देवता ही क्यूँ न कहते हो या कुछ भी लाभ वह क्यूँ न करवा रहा हो । क्यूंकी यदि तथाकथिक अवतार या भगवान है तो उसकी प्रत्येक बात प्रामाणिक होनी चाहिए । और उसको विज्ञान के नियमो द्वारा प्रमाणित किया जा सकना चाहिए । एक ही माता-पिता की संतानों मे अनेक भेद होते हैं जब सभी समान है तो उनको भी एक जैसा होना चाहिए । फिल्मों मे दिखाया जाता है कुछ महाज्ञानी संत कहते हैं सबके दो हाथ दो पैर दो आँख दो कान और एक मुह है सबका खून लाल है और सबमे एक ही आत्मा का वास है अतः सभी एक समान हैं , फिर तो सफ़ेद दूध और सफ़ेद जहर भी एक समान है , पी लेना चाहिए । वास्तव मे यह सब तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है एक बार डिस्कोवरी पर एक मादा पक्षी के विषय मे बताया जा रहा था उसके घोसले मे अंडे रखे थे जिस पर वह बैठी थी उसका एक अंडा लुड़ककर दूर हो गया तो पक्षी ने उसे वापस उसे अंडों मे मिला लिया अब परीक्षण कर्ताओं ने एक प्लास्टिक की गेंद उसी जगह पर रख दी उसने उसको भी अंडों मे मिला लिया क्यूंकी उसकी तुलनात्मक अध्ययन की शक्ति बहुत ही कम थी । उसका दिमाग हर चिकनी चीज को अंडा मानता है । फिर परीक्षण कर्ताओं ने एक चपटे आकार का समान रखा उसे भी अंडों मे मिला लिया गया क्यूंकी उसकी सतह भी चिकनी थी । आगे तो हद ही हो गई चिकनी सतह एक लंबे आकार की वस्तु रखी गई उसे भी अंडों मे मिला लिया गया क्यूंकी उसकी सतह भी चिकनी थी । उसी वीडीयो मे दूसरे पक्षी के विषय मे बताया गया कि दूसरे पक्षियों के एक समान अंडे मिले रहने पर भी वह मादा पक्षी अंडों पर अंकित निशानो को पहचानकर दौरे अंडों से अलग करती जा रही थी । अतः यंहा कहने का यह अर्थ है कि तुलनात्मक अध्ययन की क्षमता सब मे एक समान नही होती और हर चिकनी सतह वाली चीज अंडा नही होती उसी तरह । हर बताया गया अवतार ,देवता भी वास्तविक नही हो सकता , हममे यदि यही तुलनात्मक अध्ययन की क्षमता नही तो हमे अपने पूर्वजों यानि वेदिक ग्रंथो आदि कि प्रमाण मानना चाहिए । 

1 टिप्पणी:

  1. श्री कल्कि नारायण कहते है
    आप अछे लिखते है
    दुनिया की सच्चाई उनतक पहू चओ
    भगवन कल्कि सिरोही नमक स्थान पर है वंहा से ४ कम की दुरी पे राम पूरा है
    जन्हा उनके मित्र सूरदास जी महाराज आज भी रहते है
    यह राजस्थान में है

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