गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

क्या है ? स्त्री के हक मे , और क्यूँ ?

                                        ॐ शक्ति साहिताय श्री महागणेशाय नमः 
 

        हिन्दू धर्म मे स्त्री के लिए कई नियम बनये गए हैं जो स्त्री जाती के ही हित मे हैं । इनही नियमो के वेज्ञानिक आधार और लाभ को मेंने समझाना चाहा है । वेदिक नियमो का पालन करना स्त्री को कितना आवश्यक है ,सिर्फ उसके स्वयं के ही नही सारे हिन्दू समाज के लिए और आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए भी । देखिए और सिर्फ समझने का प्रयास कीजिए इस नियमो को यह नियम सिर्फ समझाने के लिए लिखे गए हैं । यदि आपको यह अनुभव होता है की आप पर इन नियमो के पड़ने से कोई मानसिक विकृती आ सकती है तो कृपया न पढे ।


1.स्त्री को नाक-कान छिदवाकर नाथ और बाली पहनना चाहिए क्यूंकी :- स्त्री शारीरिक रूप से बहुत ही संवेदनशील होती है स्त्री पर मोसम मे हुए जरा से भी बदलाव का बहुत प्रभाव पड़ता है । सोने की नथ रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है और सर्दी जुकाम जैसी बीमारियो से रक्षा होती है साथ नथ एक्यूप्रेशर और एक्यूपंचर का भी काम करती है । कान की बाली मशतिष्क के दोनों हिस्सो को प्रभावित करती है जिससे मशतिष्क की कार्य क्षमता बढ़ती है । साथ ही यह भी एक्यूप्रेशर और एक्यूपंचर का काम करते हैं । पुराने समय मे शिक्षक सजा के रूप मे एक बारीक सा कंकर लेकर कान के निचले हिस्से मे रखकर दबाया करते थे यह भी कोई सजा न होकर मशतिष्क को प्रभावी बनाने का ही एक तरीका था ।


2.स्त्री को बाल नही काटने चाहिए क्यूंकी :- पहले ही बताया जा चुका है की स्त्री का शरीर बहुत ही संवेदनशील होता है और सिर उससे भी अधिक संवेदनशील होता है । स्त्री अधिक तनाव मे नही रह सकती और सिर के मध्य मे एक सूक्ष्म छिद्र होता है  चुकी वातावरण मे कई तरह की तरंगे लगातार प्रवाहित होती रहती हैं जिससे स्त्री बहुत जल्दी प्रभावित हो सकती है । साथ ही बालों को बांधकर रखने से बार-बार मशतिष्क पर दबाव पड़ता है और मशतिष्क की कार्य क्षमता बढ़ती है । साथ बालों को अच्छे से तेल लगाकर बांधना चाहिए क्यूंकी सूखे बालों मे विद्धुत का जमाव हो जाता है जिससे मशतिष्क पर बुरा प्रभाव पड सकता है । तेल मे विद्धुत धारा का प्रवाह नही हो सकता इसलिए तेल लगाकर अच्छे से बांधा जाना चाहिए ।


3. मांग बीच से निकालकर मांग मे सिदुर ही भरा जाना चाहिए क्यूंकी :- पहले बाताया जा चुका है की सर के मध्य मे एक सूक्ष्म छिद्र होता है जंहा से लेकर कपाल तक एक ग्रंथि होती है जिसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं जिसके दोनों और मशतिष्क के दो भाग होते हैं । इसी जगाह से मांग निकाली जाती है चुकी सिंदूर मे पारे अंश होता है जो  मशतिष्क के लिए औषधी का काम करता है । और स्त्री को मशतिष्क के रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है और तनाव से जन्मे रोगो से रक्षा करता है । मांग मे सिंदूर शादी के बाद ही भरा जाता है क्यूंकी शादी के बाद स्त्री पर अचानक ग्रहस्त्यी का बोझ बड़ जाता है । चुकी स्त्री अधिक तनाव युक्त जीवन मे स्वस्थ नही रह सकती न ही अत्यधिक मेहनती कार्य कर सकती है इसलिए घर की ज़िम्मेदारी ही उसके लिए बेहतर होती है ।


4.मासिक धर्म के समय धार्मिक करी व दूसरों से दूर रहना चाहिए क्यूंकी :-इस समय स्त्री को अपवित्र माना गया है । विज्ञान भी मानता है इस समय रक्त के साथ शरीर की गंदगी भी निकलती है । जिससे दूसरों को संक्रमण हो सकता है । साथ ही कई विकृत तरंगे भी निकलती हैं । इस समय चुकी शरीर से रक्त निकलता है जिससे कमजोरी भी आ जाती है इसलिए इस समय आराम जरूरी भी हो जाता है । इस समय शरीर कमजोर और अति संवेदनशील हो जाता है जिसके कारण बुरी नजर से तथा अत्यधिक मेहनत से नई परेशानी का सामना करना पड़ सकता है । धार्मिक जगहों मे अत्यधिक शुद्धता का ध्यान रखा जाता है और बहुत से व्यक्तियों का समूह भी होता है इसलिए धार्मिक कार्यों से भी दूर रहना चाहिए ।

5.विधवा को सफ़ेद साड़ी पहनना चाहिए क्यूंकी :- सफ़ेद रंग सात्विकता और पवित्रता का प्रतीक होता है जो किसी विधवा स्त्री को आत्मबल और सटविकता प्रादान करता है । पति विहीन होने पर स्त्री का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण हो जाता है और इस समय उसको ईश्वत की कृपा की बहुत ही अधिक आवश्यकता होती है । आज रंगों के महत्व को विज्ञान भी स्वीकारता है रंगो के आधार पर बीमारियो का निदान भी किता जा रहा है ।

6. शमशान मे स्त्री को नही जाना चाहिए क्यूंकी :-  शमशान मे मृत शरीर को जलाया जाता है और मृत शरीर मे कई तरह के विषाणु बहूत ही जल्द जन्म ले लेते हैं । स्त्री का शरीर पुरुष की तुलना मे नाजुक और संवेदनशील होता है और उसका शरीर जल्द ही इन विष्णुओन की चपेट मे आ सकता है । शमशान मे कई तरह के बुरे प्रभाव भी होते हैं जिनसे स्त्री प्रभावित हो सकती है । स्त्री के सर के केश नही कटे जा सकते और कई तरह के विषाणु जो मृत शरीर मे जन्म ले लेते हैं वो सिर्फ नहाने -धोने से भी नही नष्ट होते इसलिए शरीर का दाह संस्कार भी पुत्र द्वारा ही कराया जाता है । क्रूर कर्म भी स्त्री द्वारा नाही कराये जाते क्यूंकी क्रूर कर्मो का स्त्री पर बहुत समय तक प्रभाव रहता है । जो उसको लंबे समय तक प्रभावित कर सकता है ।

7.रात मे लड़कियां अकेले घर से बाहर न जाए: क्यूंकी :- रात के समय चंद्रमा की किरणों और तरंगो का बहुत अधिक प्रभाव होता है चुकी चंद्रमा जल तत्व को प्रभावित करता है और मनुष्य मे 70-75% जल तत्व होता है । जल तत्व के प्रभाव के कारण ही समुद्र मे ज्वार-भाटा आता है जो चंद्रमा पर जल के प्रभाव का स्पष्ट प्रमाण है । स्त्री तथा भावुक व्यक्तियों पर चंद्रमा का अत्यधिक प्रभाव रहता है । और अमावस्या और पूर्णिमा को इसका सर्वाधिक प्रभाव होता है । जिसके कारण स्त्री की मानसिक दशा बहुत अधिक प्रभावित हो सकती है । रात के समय नमी के कारण सूक्ष्म विषाणु अधिक सक्रिय हो जाते जो शारीरिक रूप से कमजोर स्त्री को बहुत अधिक प्रभावित कर सकते हैं । और एक तरह से यह उनकी सुरक्षा की दृष्टी से भी जरूरी है ।

8.गर्भवती स्त्री को ग्रहण मे बाहर नही जाना चाहिए क्यूंकी :- सूर्य से कई तरह की किरने निकलती हैं और उनमे से कई किरने सूर्य ग्रहण के समय चंद्रमा के भी पार निकालजाती हैं जिनमे से कई विकृत ( रेडियो एक्टिव होना ) हो जाती हैं और इनसे गर्भ मे पल रहे शिशु के विकास पर भी प्रभाव पद सकता है । साथ ही यह मनुष्यों को भी प्रभावित कर सकता है । इसी तरह चंद्र ग्रहण के समय भी वही सूर्य की किरने धरती की पार निकालकर चंद्रमा से परवर्तित हो कर  वापस धरती पर आ जाती हैं यह भी सूर्य ग्रहण की ही तरह प्रभावी हो सकती हैं।

9. स्त्री पायल पहने क्यूंकी :-  स्त्री  की हड्डियाँ पुरुषों के मुक़ाबले मे लगभग 20 गुना अधिक कमजोर होती हैं ।  पायल सोने या चांदी की होती है जो लगातार रगड़ खाती रहती है और यह स्त्री के पैर की हड्डियों को लगातार मजबूती देती रहती हैं । साथ ही घुंघरू की आवाज से घर  के कई तरह के दोष दूर हो जाते हैं । स्त्री के पैर मे घुंगरू की आवाज भी उसी तरह शुभ प्रभाव उत्पन्न करती है जैसे मंदिर के घंटे अपना शुभ प्रभाव दिखाते हैं । घुंघरू की आवाज से इस बात का भी ज्ञान हो जाता है की आसपास कोई स्त्री है और हमको अपना व्यवहार शालीन बनाए रखना है।

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