गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी सहित सभी देवताओं के कुलदेवता भगवान श्री गणेशजी को बार-बार प्रणाम

                                                     ॐ श्री महा गणेशाय नमः 

भगवान शंकरजी के विवाह मे गणेशजी के पूजन के विषय मे ज्ञानी व्यक्ति भी भ्रमित हो सकते हैं यह बहुत दुख की बात है कोई साधारण व्यक्ति इस विषय मे भ्रमित हो यह समझा जा सकता है । यदि हम भगवान गणेशजी को सिर्फ भगवान शंकरजी के पुत्र  जैसी सीमाओं मे बांधने के ज्ञान तक ही सीमित हैं तो यह निश्चित है की हमने स्वयं को कुए के मेडक के समान बना लिया लिया है ।  

                                                             देवा ऊचुः
                                                         ( देवता बोले )
गजाननाय पूर्णाय सांख्यरूपमयाय ते । विदेहेन च सर्वत्र संस्थिताय नमो नमः ॥ 1॥
गणेश्वर ! आप गज के समान मुख धारण करने वाले , पूर्ण परमात्मा और ज्ञानस्वरूप हैं । आप निराकार सर्वत्र विद्यमान है; आपको बारम्बार नमस्कार है ।

अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते । मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥ 2 ॥
हेरंब ! आपको किन्ही प्रमाणों द्वारा मापा नही जा सकता । आप परशु धारण करने वाले हैं । आपका वाहन मूषक है । आप विश्वेश्वर को बारम्बार नमस्कार है ।

अनंतविभायैव परेषां पररुपिणे    । शिवपुत्राय देवाय गुह्याग्रजाय ते नमः ॥ 3 ॥
आपका वैभव अनंत हैं ; आप परात्पर हैं ; भगवान शिव के पुत्र तथा स्कन्द के बड़े भाई हैं ; देव ! आपको नमस्कार है ।

पार्वतीनंदनायैव देवानां पालकाय ते । सर्वेषां पूज्यदेहाय गणेशाय नमो नमः ॥ 4 ॥
जो देवी पार्वती को आनंदित करने वाले उनके लाडले लाल हैं , देवताओं के रक्षक हैं और जिनका श्री विग्रह सबके लिए पूजनीय है , उन आप गणेशजी को बारम्बार नमस्कार है ।

स्वनन्दवासिने तुभ्यं शिवस्य कुलदेवत । विष्णवादीनां विशेषेण कुलदेवताय ते नमः ॥ 5 ॥
भगवान शिव के कुलदेवता आप अपने स्वरूपभूत स्वानन्द-धाम मे निवास करनेवाले हैं। विष्णु आदी देवताओं के तो आप विशेषरूप से कुलदेवता हैं ; आपको नमस्कार है ।

योगाकाराय सर्वेषां योगशांतीप्रदाय च । ब्रह्मेशाय नमस्तुभयं ब्रह्मभूत प्रदाय ते ॥ 6 ॥
आप योगस्वरूप व सबको योगजनित शांति प्रदान करने वाले हैं ; ब्रह्म भाव की प्राप्ति करानेवाले ; आप ब्रह्मेश्वर को नमस्कार है ।

सिद्धीबुद्धीपते नाथ सिद्धीबुद्धीप्रदायिने । मायिन मायिकेभ्यश्च मोहदाय नमो नमः ॥ 7॥
नाथ ! आप सिद्धीबुद्धी के प्राणपति तथा सिद्धी और बुद्धी प्रदान करने वाले हैं ; माया के अधिपति तथा मायावियों को मोह मे डालने वाले हैं ; आपको बारम्बार नमस्कार है ।

लम्बोदराय वै तुभ्यं सर्वोदरगताय च । अमायिने च मायाया आधाराय नमो नमः ॥ 8 ॥
आप लंबोदर हैं ; जठरनाल रूप मे सबके उदर मे निवास करते हैं ; आप पर किसी की माया नही चलती ; आप ही माया के आधार हैं ; आपको बार-बार नमस्कार है ।


गजः सर्वस्य बीजं यत्तेन चिन्हयेन विघ्नप । योगिनस्त्वां प्रजान्ती तदाकार भवन्ति ते ॥ 9 ॥

विघ्नराज ! गज सबका बीज है । उस बीज रूप  चिन्ह से  ही योगीजन आपको पहचानते हैं तथा आपका सारूप्य प्राप्त कर लेते हैं । ।

तेन त्वं गजवक्त्रश्च किं स्तुमत्वां गजानन । वेदादयों विकुंठाश्च शंकराद्याश्च देवपाः ॥ 10 ॥

गजानन ! उस बीजस्वरूप गजचिन्ह के कारण ही आप ' गजमुख ' कहलाते हैं ; हम आपकी क्या स्तुती कर सकते हैं ? आपकी स्तुती करने मे वेदादी शास्त्र तथा शंकर आदी देवेश्वर भी कुंठित हो जाते हैं ।

शुक्रादयश्च शेषाद्याः स्तोतु शक्ता भवन्ति न । तथापि संस्तुतों$सि त्वं स्फूर्त्या त्व्द्दशर्नात्म्ना ॥ 11 ॥  ( मुद्दल पुराण )
शुक्र आदी विद्वान और शेष आदी नाग भी आपके स्तवन मे समर्थ नही हैं ; तथापि दर्शनरूप स्फूर्ती से हमने आपका स्तवन कर लिया है

1 टिप्पणी:

  1. आस्था के आधार पर आप सही हो सकते हें परन्तु तर्क के आधार पर यह समझ से परे कि बात है ! या तो दोनों गणेश भिन्न हों - शिव पुत्र गणेश अलग और कुलदेवता गणेश अलग ! क्योकि गणेश भी तो जन्म मृत्यु से परे हें !

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