गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

क्या वास्तव मे गुणो के आधार पर जातीगत भिन्नता या श्रेष्ठता को मानना गलत है ?

                                                              ॐ श्री महागणेशाय नमः

    में सभी को यह कहते सुनता हूँ की यह जातीवाद गलत है इसको मिटाना चाहिए तब ही भारत या विश्व का भला हो सकता आदि-आदि । परंतु उनके ही जीवन मे देखा जाय तो वे भी इसी गुणो के आधार पर जातीगत भिन्नता के अनुसार ही सभी कार्य करते हैं । हम सभी के जीवन मे एसा ही है । हम यदि अनाज भी खरीदते हैं तो पहले यह देखते हैं यह किस जाती का है और इसकी क्या विशेषता है जैसे यदि गेंहू खरीदते हैं तो देखते किस जाती का है और इसकी रोटी बनने पर क्या विशेषता होगी । और उसका भाव भी भिन्न होता है एसा ही सभी जीवो ,पेड़-पौधों मे भी है । यंहा तक की जड़ पदार्थों मे भी गुणो के आधार पर श्रेष्ठता का चुनाव किया जाता है एसा ही मनुष्यों मे भी है । क्रमिक विकास के कारण सभी मे यह अन्तर है । जिन वंशजो ने  जैसे कर्म किए उनके वंशजों मे  वैसे गुणो का विकास होता गया । इस अनंत ब्रह्मांड मे सभी की श्रेष्ठता को मापने का एक ही माप है गुणो की श्रेष्ठता उसमे भी अनुवांशिक गुणो की विशेषता का महत्व सबसे अधिक है और उसमे भी यदि कोई वंश उन गुणो का श्रेष्ठ कर्मो द्वारा रक्षा व और विकास करता है तब तो वह सबसे अधिक श्रेष्ठ है ।

इस तरह की समानता की बातें करने वालों से यदि पूछा जाय की यदि किसी प्रतिष्ठान ,उद्योग या कार्यालय मे सभी श्रेष्ठ योग्यता प्राप्त और कम योग्यता प्राप्त व्यक्तियों से क्या एक जैसा काम लिया जा सकता है और क्या उसके बदले उनको एक जैसा पारिश्रमिक दिया जा सकता है ? तो इसका जवाब नही ही  होगा । भिन्नता के कारण ही यह सारे विश्व का कार्य चल रहा है । यदि सबको समान कर भी दिया जाय तो यह तो वैसी ही बात हो गई जैसे आप गणित कर रहे हैं और उसमे सिर्फ सिर्फ एक ही संख्या का प्रयोग कर रहे हैं । 0 से 9 तक की सभी संख्याओं का अलग अलग मान और क्रम है और इसके बिना गणित का कोई अस्तित्व ही नही हो सकता यदि सभी अलग-अलग मान की संख्याओं को 0 से 9 तक सिर्फ कोई एक ही मान दे दिया जाय तो आप कल्पना कर सकते हैं की क्या होगा ।उदाहरण स्वरूप 0 से 9 तक की संख्या मे सभी को समान कर दिया गया और सभी संख्याओं को 0 ही मान दे दिया गया तो 0 मे 1 जोड रहे हैं ,घटा रहे हैं या गुना भाग जो भी कर रहे है , सब कुछ जीरो ही हो रहा है और यह सिर्फ मूर्खता ही होगी । इसी तरह समानता की बाते करने वालों की सुने और कोई सवाल हल करते समय यह कर दें कि नही इस आधे सवाल मे हम 0 को 0 नही 9 का मान देकर सवाल हल करेंगे तो क्या परिणाम होगा ? , आप सोच सकते हैं ।
हम किसी भी और से और किसी भी आधार पर क्यूँ न अध्ययन कर लें भिन्नता को स्थान देना ही होगा और यदि कोई भी संत , महात्मा , ज्ञानी या स्वयं को भगवान कहने वाला भी यदि इसके विपरीत कहे तो आप जान लो कि वह सिर्फ मूर्ख है और आपको भ्रमित कर रहा है । हाँ यदि वह यह कहता है कि आपको गुणो का विकास कर उक्त श्रेष्ठता को पाने का प्रयास करना है तब ही उसे सही माना जा सकता है ?

सभी कुछ इसी भिन्नता के कारण चल रहा है । आपको एक और उदाहरण देता हूँ की मान लों आपके पास एक केलकुलेटर है जो 0 से 9 तक संख्याओं के तय मान व क्रम के अनुसार काम नही कर रहा है तो इसका सीधा अर्थ है उसे या तो सुधार की आवश्यकता है या नही सुधारा जा  सकता तो उसे सिर्फ कचरे मे फेक दिया जाएगा अब आपको स्वयं को उस केलकुलेटर की जगह रखकर सोचना है की आप क्या चाहते हैं ? अपने मे सुधार ( गुणो का विकास ) या फिर बेकार उनुपयोगी वस्तु की तरह नष्ट हो जाना चाहते हैं ।

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