गुरुवार, 22 दिसंबर 2011

ब्राह्मणो की महिमा व क्षेत्रवासी ब्राह्मणो के भेद ( स्कन्द पुराण-प्रमास खंड )

                                              ब्राह्मण श्वरूपाय श्री महा गणेशाय नमः

महादेवजी कहते हैं - देवी ! पृथ्वी पर जो ब्राह्मण हैं , मेरे प्रत्यक्ष स्वरूप हैं । स्वर्ग के देवता तो परोक्ष हैं ,ब्राह्मण ही प्रत्यक्ष देवता हैं । ब्राह्मण मुझे प्रिय हैं । जो भक्ति भाव से उनकी पूजा करता है , वह सदा मेरे ही पूजा करता है । जो भक्ति द्वारा उन्हे संतुष्ट करता है , वह मुझे संतुष्ट कर लेता है । जो ब्राह्मण है वह में हूँ । उनके साथ जिसका बेर है वह मेरा भी बेरी है । प्रिये ! पृथ्वी पर जीतने भी ब्राह्मण हैं उनमे से जिनहोने वेद व्रत का पालन किया , वे तो पूज्य हैं ही ; जिनहोने वेद  व्रत का पालन नही किया है , वे भी पूजनीय हैं । ब्राह्मण जाती से ही पवित्र है , वेदाभ्यास से उनकी पवित्रता और अधिक बड जाती है । अतः हव्य और काव्य ( यज्ञ और श्राद्ध ) मे कंही भी ब्राह्मण निंदा के योग्य नही है । काने , कुबड़े , कोढ़ी ,रोगी तथा दरिद्र ब्राह्मणो का भी विद्वान पुरुष अपमान न करे ; क्यूंकी ये मेरर स्वरूप कहे गए हैं । बहुत से अज्ञानी मनुष्य इस बात को नाही जानते जो मेरे स्वरूपभूत ब्राह्मणो को मारते हैं , उनसे शास्त्र विपरीत कर्म करवाते हैं , जनहा नाही भेजना चाहिए वंहा भेजते हैं तथा उनसे दासता ( सेवा टहल ) कराते हैं , वे जब मरते हैं , तब यमदूत उनके माथे पर आरा रखकर चीरते हैं - ठीक वैसे ही , जैसे बड़ई लकड़ी चीरते हैं । जो ब्राह्मण का अंगभंग करता और उसके प्राण लेता है , उसे ब्रह्म हत्यारा जानना चाहिए ; उसके उद्धार के लिए कोई प्रायश्चित नही है । वह पचास करोड़ नरक मे से प्रत्येक मे क्रमशः सहस्त्रों वर्षो तक बहुत पीड़ित किया जाता है । इसलिए मानवो को चाहिए की वे ब्राह्मणो को सदा नमस्कार करें , अन्न-पान देकर सदेव उनकी पूजा मे संलग्न रहें । सभी ब्राह्मण सब प्रकार के दान लेने के अधिकारी हैं । दूसरा कोई दान लेने मे समर्थ नही है । यदि लोभवश कोई दान ग्रहण करता है तो वह अधम गति को प्राप्त होता है । तपस्या से पवित्र हुआ ब्राह्मण पाप रहित होता है , उस ब्राह्मण को दोष का संपर्क नही प्राप्त होता । ब्राह्मण जन्म से ही महान है । लोक और लोकेश्वर भी ब्राह्मणो के पूजक हैं । ब्राह्मण यदि कुपित हों तो अपराधी को नष्ट कर सकते हैं , उसे अपने तेज से जला सकते हैं । ये ही स्वर्ग मे पहुचाने वाले सनातन देवदेव हैं । ब्राह्मण पूज्यनीय है , वंदनीय हैं ; उन्ही मे सब कुछ प्रतिष्ठित है । वे ही इन सब लोको का परस्पर पालन करते हैं । अपने स्वाध्याय और ताप को प्रगट न करने वाले ब्राह्मण उत्तम व्रत वाले हैं ।  जो विद्या और व्रत मे स्रात हैं , दूसरे के आश्रित न रहकर जीवन-निर्वाह करते हैं , वे ब्राह्मण कुपित होने पर कालसर्प बन जाते हैं ; अतः उनका पूजन करना चाहिए , उन्हे कुपित नही करना चाहिए । अध्यात्म स्वरूप का चिंतन करने वाले ब्राह्मण ही सब प्राणियों की गति हैं । ब्राह्मण यदि विपत्ती मे पड़ा हो तो उसकी सब उपायों से रक्षा करना चाहिए । ये ब्राह्मण सब मनुष्यों द्वारा सर्वत्र फिजा पाने योग्य हैं । फिर जो अपने चित्त को संयम मे रखने वाले तथा विशेषतः पुण्य क्षेत्र के निवासी हैं , उनके विषय मे तो कहना ही क्या है । जो द्विज विधी पूर्वक क्षेत्र-सन्यास तथा वृत्ती भेद के क्रम को जानते हैं , वे क्षेत्र के पूर्ण फल के भागी होते हैं ।

 प्रजापत्य , महीपाल , कपोत , ग्रंथिक , कुटिक , वेताल , पद्म , हंस , धृतराष्ट्र  , वक , कंक , गोपाल , त्रुटिक , प्रयर ,गुटिक तथा दण्डीक - ये क्षेत्रवासी ब्राह्मणो के भेद हैं ।

प्रजापत्य ब्राह्मण - अहिंसा , गुरु-शुश्रूषा , स्वाध्याय , शौच , संयम , सत्य तथा अस्तेय ( चोरी के आभाव ) यह प्रजापत्यों ब्राह्मणो का व्रत कहा गया है ।

महीपाल ब्राह्मण - शांति-पुष्टी आदी कर्मो द्वारा जो इस मही ( पृथ्वी ) का पालन करते हैं , वे महीपाल ब्राह्मण कहे गए हैं ।

कपोत ब्राह्मण - जो ब्राह्मण धरती पर गिरे हुए अन्न को कपोत की भांति चुनते हैं और इस तरह उच्छवृत्ती से जीविका चलाते हैं , ये साधु पुरुष कपोत कहलाते हैं ।

ग्रंथिक ब्राह्मण - जो ब्राह्मण घर बनाकर रहते हैं , वे सद्ग्रंथ या ग्रंथिक कहलाते हैं ।

कुटिक ब्राह्मण - जो ब्राह्मण सहसा घर त्याग देते हैं , वे शिवाराधना मे तत्पर रहने वाले ब्राह्मण कुटिक कहे गए हैं ।

वेताल ब्राह्मण - जिन ब्राह्मणो का  तीर्थ सेवन मे अनुराग है तथा जो पत्नी के साथ रहते हुए जो कुछ मिल जाए उसी पर संतोष करते हैं ,वे महान साहस ( धेर्य ) से युक्त साधक वेताल ब्राह्मण कहे गए हैं ।

पद्म ब्राह्मण - जो ब्राह्मण  इंद्रियों को संयम मे रखते हैं , परंतु कामनाओ मे आसक्त हैं , राज्य और धन की इच्छा से साधनारत हो रहे हैं , वे पद्म कहलाते हैं और सदा भिक्षा से जीवन निर्वाह करते हैं ।    

हंस ब्राह्मण - जो ब्राह्मण ज्ञानयोग से युक्त हैं , जिनके केवल व्यवहार मे ही द्वेत है , वे साधक हंस कहे गए हैं ।

धृतराष्ट्र ब्राह्मण - जिन ब्राह्मणो ने  ब्रह्मचर्य , सत्वगुण तथा निर्लोभता आदी गुणो से सम्पूर्ण जगत को जीत लिया है और जो सबका धारण-पोषण करते हैं , वे धृतराष्ट्र कहे गए हैं ।

वक ब्राह्मण - जो ब्राह्मण सदा एकमात्र स्वार्थ मे ही स्थित होकर ज्ञान, व्रत अथवा धर्म का आचरण करते हैं , उन्हे वक कहते हैं

कङ्क ब्राह्मण - जो ब्राह्मण उत्कृष्ट सिद्धी प्राप्त करने के लिए जलाशय का आश्रय ले कमल की नाल और सिंघाड़ा आदी खाकर रहते हैं , ये साधक कङ्क कहे गए हैं ।

गोपाल ब्राह्मण - जो ब्राह्मण गौओ के साथ चलते हैं , गोशाला मे निवास करते हैं तथा पंचगव्य का सेवन करते हैं , वे साधक गोपाल कहे गए हैं ।

त्रुटिक ब्राह्मण - जो ब्राह्मण कृच्छ और चांद्रायण आदी व्रतो के द्वारा अपने शरीर को क्षीण करते हैं । तथा त्रुटिकाल ( आधे निमेष ) मे ही भोजन कर लेते हैं वे साधक त्रुटिक माने गए  हैं ।

प्रयर ब्राह्मण - जो ब्राह्मण कुश की पत्नी बनाकर मठ मे स्थापित करते हैं और ग्रहस्थ धर्म का पालन करते हुए भिक्षा वृत्ती से जीवन-निर्वाह करते हैं , वे साधक प्रयर या मठर कहलाते हैं ।

गुटिक ब्राह्मण - जो ब्राह्मण कंद अथवा मूल फल की एक-एक ग्रास की आठ गुटिका बनाकर उन्हीका आहार करते हैं , वे गुटीक कहलाते हैं ।

दण्डी ब्राह्मण - जो ब्राह्मण रात मे वीरासन लगाकर अपने ही शरीर को दंड देने मे संलग्न हैं , वे दण्डी कहे गए हैं ।

प्रमास क्षेत्र मे रहने वाले जो ब्राह्मण इस प्रकार की वृत्तियो से जीविका चलाते हैं , उनके द्वारा बालरूपधारी भगवान ब्रह्मा सदा पूजनीय हैं । जो महापातकी हैं और जिनहे ब्राह्मणो ने अपनी पंक्ति से बाहर कर दिया है , वे बालकरूपधारी ब्रह्मा जी
का स्पर्श न करे । जो दीर्ध्जीवी होना चाहते है , वह ब्रह्मचारी , शांत और जितेंद्रिय ब्राह्मण का कभी अपमान ण करें ।

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